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________________ मरणकण्डिका - ३१५ वृद्धिंगत हो जाता है। सत्य है, क्या मिट्टी में तल्लीन अर्थात् अप्रगट गन्ध जल का आश्रय पाकर प्रकट नहीं हो जाती? अवश्य ही हो जाती है ।।११२६ ।। रहितो युव-सङ्गत्या, मोहः सन्नपि लीयते । जीवस्य जल-सङ्गत्या, पुष्पगन्ध इव स्फुटम् ।।११२७ ॥ अर्थ - जैसे मिट्टी की गन्ध मिट्टी में रहते हुए भी जल के संसर्ग बिना प्रगट नहीं होती, वैसे ही तरुण के संसर्ग बिना मनुष्य का मोह प्रगट नहीं होता ॥११२७ ।। युवाऽपि वृद्ध-शीलोऽस्ति, नरो हि वृद्ध-सङ्गतः। मानापमाना-भी-शङ्का मार्गदुनि-पानिधिः।।११२८ ॥ अर्थ - वृद्ध पुरुषों के सम्पर्क से तरुण पुरुष भी मान-अपमान के भय से, शंका से, लज्जा से एवं धर्मबुद्धि आदि से वृद्ध सदृश ही आचरण करने लगता है।।११२८ ।। वृद्धस्तरुण-शीलोऽस्ति, नरस्तरुण-सङ्गतः । विश्रम्भनिर्विशङ्कत्व-मोह-प्रकृति-योगतः॥११२९।। अर्थ - तरुण पुरुष जैसे स्त्रियों पर विश्वास करके निर्भय एवं निशंक रहता है, वृद्ध पुरुष भी यदि ऐसे तरुण की संगति करता है तो वह भी मोह प्रकृति के उदय से उस तरुण पुरुष के सदृश ही हो जाता है ।।११२९ ।। इन्द्रियार्थरतिर्जीवो, युव-गोष्ट्या विमूढ-धीः । शौण्ड-गोष्टया यथा शौण्डः, सुरां काक्षति सर्वदा ।।११३०॥ अर्थ - जैसे मद्य पीने वालों की गोष्ठी में बैठने वालों को मद्य पीने की अभिलाषा उत्पन्न हो जाती है ; वैसे ही तरुणों की गोष्ठी में रहने वाले विमूढ़ बुद्धि वाले वृद्धजन भी इन्द्रिय-विषयों में प्रेम करने लगते हैं ।।११३०॥ विश्रब्धशपलाक्षो यः, स्वैरी तरुण-सङ्गतः । महिला-विषयं दोषं, स शीघ्रं लभते नरः ।।११३१॥ अर्थ - जो वृद्ध तरुणों की संगति में रहता है, उसकी इन्द्रियाँ चंचल हो जाती हैं, मन चलायमान हो जाता है, इससे वह स्त्रियों पर विश्वास करने लगता है। फलतः शीघ्र ही स्वच्छन्द होकर स्त्रीविषयक दोषों का भागी हो जाता है।।११३१॥ ध्वान्तैकान्त-कुशीलेह-दर्शनै: करणैस्त्रिभिः । कुत्सितो जायते भावः, स्त्री-पुंसानामसंशयम् ॥११३२ ।। अर्थ - एकान्त स्थान में स्त्री के साथ पुरुष का या पुरुष के साथ स्त्री का होना, दोनों का अन्धकार में मिलना और स्त्री-पुरुष की रतिक्रीड़ा को प्रत्यक्ष देखना ! इन तीन कारणों से स्त्री या पुरुष के मन में कामसेवन की अभिलाषा के कुत्सित भाव उत्पन्न हो जाते हैं। स्त्री-पुरुष का एकत्र सहवास भी इसका एक प्रबल निमित्त-कारण है॥११३२॥ ___ प्रश्न - पूर्वकाल की अपेक्षा वर्तमानकाल में कुशील का प्रभाव विशेष बढ़ता दिखाई दे रहा है, इसका क्या कारण है?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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