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________________ मरणकण्डिका - २८६ को कहा। जैसे ही वह पापी बैठने लगा वैसे ही धड़ामसे अत्यंत दुर्गंधमय पाखानेके मैलमें जा पड़ा। अब कडारपिंगको बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसने निकालने के लिये सुंदरीसे बहुत प्रार्थना की किन्तु पापका फल भोगने के लिए उसने उसको नहीं निकाला। छह मास व्यतीत होनेपर कुबेरदत्तने द्वीपांतरसे आनेका बहाना किया। राजा और मंत्रीने उसे जो किंजल्क पक्षी लानेको कहा था, सेठने पाखानेसे कडारपिंगको निकालकर उसको पक्षियोंके पंख लगाकर मुख काला कर हाथपैर बांध पीजड़ेमें डालकर राजाके समक्ष उपस्थित किया तथा वास्तविक सब वृत्तांत कह सुनाया। राजाको कडारपिंग पर क्रोध आया और उसने उस कामी पापीको प्राणदंड दिया, कडारपिंग मरकर नरक गया । इसप्रकार राया नारों के सेवन का माव करनेसे तथा साक्षात् सेवन करनेसे महाभयानक दुःख उठाने पड़ते हैं ऐसा जानकर इस पापसे विरत होना चाहिये। भवन्ति सकला दोषा, नैवामी ब्रह्मचारिणः । सम्पद्यन्ते गुणाश्चित्रास्तद्विपक्षा विरागिणः ।।९७२।। अर्थ - ब्रह्मचारी पुरुष के उपर्युक्त कोई भी दोष नहीं होते। प्रत्युत उस विरागी के उन दोषों के विपक्षभूत अत्यधिक गुण होते हैं।।९७२ ।। कामाध्वना कुच-फलानि निषेवमाणा, रम्ये नितम्ब-विषये ललना-नदीनाम्। विश्रम्य चारु-वदनाम्ब निपीयमानाः, सौख्येन नारकपुरी प्रविशन्ति नीचाः ।।९७३॥ अर्थ - कामुक नीच पुरुष स्त्री रूपी नदियों के रम्य नितम्ब में कामरूपी मार्गसे प्रवेश कर तथा कुच रूपी फलों का सेवन कर वहाँ विश्राम करके उसके मुख की लार (जल) पीता हुआ सुखपूर्वक नरकपुरी में प्रवेश कर जाता है ।।९७३॥ नरो विरागो बुधवृन्द-वन्दितो, जिनेन्द्रवद्-ध्वस्त-समस्त-कल्मषः । विदयमानं ज्वलता दिवानिशं, स्मराग्निना लोकमवेक्षतेऽखिलम् ॥९७४॥ इति कामदोषा;॥ अर्थ - जो पुरुष स्त्रियों आदि के विषयों से विराग सम्पन्न है, वह विरागी, ज्ञानी पुरुषों द्वारा वन्दित होता है एवं जिनेन्द्रदेव सदृश समस्त पापों का नाश करने वाला होता है तब वह प्रज्वलित कामाग्नि में अहर्निश अतिशयरूप से जलते हुए इस अखिल लोक को मुक्तात्मा के सदृश प्रेक्षकरूप में मात्र देखता ही है ।।९७४ ।। इस प्रकार कामदोष का प्रकरण पूर्ण हुआ। __स्त्रीदोष व्याख्यान जननी जनकं कान्तं, तनयं सहवासिनम्। पातयन्ति नितम्बिन्यः, कामार्ता दुःखसागरे ।।९७५ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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