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________________ मरणकण्डिका - २८७ अर्थ - विषयान्ध कामार्ता स्त्री किसी की भी परवाह न करके अपने माता, पिता, पति, पुत्र एवं साथ में रहने वाले अन्य परिवार को भी दुखरूपी महासमुद्र में डाल देती है।।९७५ ।। स्त्री-निःश्रेण्योन्नतस्यापि, दुरारोहस्य लीलया। मस्तकं नर-वृक्षस्य, नीचोऽप्यारोहति द्रुतम् ।।९७६ ।। अर्थ - जो बहुत ऊँची है और जिस पर चढ़ना अति कठिन है ऐसी स्त्री रूपी नसैनी द्वारा नीच पुरुष भी मान से उन्नत पुरुष रूपी वृक्ष के मस्तक पर शीघ्रता से चढ़ जाता है।।९७६ ।। प्रश्न - 'इस श्लोक का क्या आशय है ? उत्तर - इसका आशय यह है कि वृक्ष कितना ही ऊँचा हो, नसैनी के माध्यम से छोटे कद वाला मनुष्य भी जैसे उस वृक्ष के सिरे तक चढ़ जाता है। वैसे ही पुरुष बलवान, उच्चकुलीन एवं लब्धप्रतिष्ठ हो किन्तु यदि उसकी स्त्री दुराचारिणी है तो वह किसी नीच पुरुष का आश्रय ग्रहण कर अपने पति की प्रतिष्ठा और अभिमान को मिट्टी में मिला देती है और उसकी कीर्ति का क्षय कर देती है। मान्या ये सन्ति मानामक्षोभ्या बलिनामपि । सर्वत्र जगति ख्याता, महान्तो मन्दरा इव ।।९७७ ।। शटैस्ते स्त्रीजनैस्तीक्ष्णैर्नाम्यन्ते क्षणमात्रतः। नितान्त-कुटिलीभूतैरङ्कुशैरिव दन्तिनः ।।९७८ ।। अर्थ - इस लोक में मनुष्यों के मध्य जिनकी मान्यता, धैर्य, महानता, कुलीनता, सम्पत्ति-सम्पन्नता एवं शारीरिक शक्ति सुमेरु पर्वत सदृश विख्यात है, जिसे बलवान पुरुष भी नहीं हिला सकते, किन्तु ऐसे महापुरुष का स्वाभिमान भी मूर्ख, कठोर एवं दुराचारिणी स्त्रियों द्वारा क्षणमात्र में उसी प्रकार निम्न स्तर का अथवा नष्ट कर दिया जाता है जिस प्रकार अतिशय तीक्ष्ण अंकुश द्वारा बलवान हाथी भी नीचे बैठा दिया जाता है।९७७९७८।। आसन्रामायणादीनि, स्त्रीभ्यो युद्धान्यनेकशः। मलिनरभ्योऽन्दमालाभ्यः, सलिलानीव विष्टपे ॥९७९ ॥ अर्थ - जैसे काली मेघ-मालाओं से जल निसृत होता है, वैसे ही इस जगत् में स्त्रियों के कारण ही रामायण एवं महाभारतादि में वर्णित अनेक महायुद्ध हो चुके हैं ।।९७९ ।। विसम्भ-संस्तव-स्नेहा, जातु सन्ति न योषितः । त्यजन्ति वा परासक्ताः, कुलं तृणमिव द्रुतम् ।।१८० ।। अर्थ - स्त्रियों में विश्वास, प्रशंसा एवं स्नेह गुण कभी नहीं होते, क्योंकि पर-पुरुषासक्त नारी अपने महान कुल को या कुलीन भी पति को तृण सदृश मानकर शीघ्र ही छोड़ देती है ॥९८०॥ विनम्भयन्ति ता मत्य, प्रकारैर्विविधैर्लघु । विसम्भः शक्यते कर्तुमेतासां न कथंचन ॥९८१ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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