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________________ मरणकण्डिका - २८५ अर्थ - स्वयं नपुंसक होते हुए भी जो ऊपर से स्त्री का वेष धारण कर यहाँ-वहाँ काम क्रीड़ा करके भी इच्छित रति सुख प्राप्त नहीं कर पाता, उसका यह नपुंसकपना पूर्वभव में किये गये परस्त्री-गमन का फल है।९६८॥ जननी भगिनी भार्या, देहजा बहु-जन्मसु। आयासाकीर्ति-कारिण्यप्तस्य सन्ति विशीलिकाः ॥९६९ ॥ अर्थ - परस्त्रीगामी की माता, बहिन, पत्नी और पुत्री आदि बहुत अर्थात् लाखों जन्मों तक उसे दुख एवं अपयश देने वाली सदा व्यभिचारिणी ही होती हैं ।।९६९ ।। प्रश्न - मातादि बहुत जन्मों तक व्यभिचारिणी होती हैं, इसका क्या अभिप्राय है ? उत्तर - इसका आशय यह है कि जो कामी पुरुष किसी अन्य की माता या बहिन या भार्या या पुत्री का शील भंजन कर देता है उसे कुशील स्वभाव वाली माता या बहिन आदि मिलेगी। अथवा उसकी माता आदि शील स्वभावी होगी किन्तु कोई कामी बलात् उनका शीलभंग कर देगा जिसके अपयश से वह जीवन भर दुखी रहेगा। विशीलो दुर्भगोऽमुत्र, जायते पारदारिकः । निर्दोषोऽप्यश्नुते बन्धं, संक्लेशं कलहं वधम् ॥९७०॥ अर्थ - परस्त्री-गामी आगामी भवों में दुराचारी एवं कुरूप होता है, तथा निर्दोष होते हुए भी उसे अकारण ही बन्धन, क्लेश, कलह और वधादि के साथ-साथ दोषारोपण अर्थात् अवर्णवाद के दुख भोगने पड़ते हैं।९७०॥ महान्तं दोषमासाद्य, भवेऽन स्मर-मोहितः। मृत्वा कडारपिङ्गोऽगाच्छ्वभ्रं दुःसह-वेदनम् ।।९७१।। अर्थ - काम से मोहित हुआ कडारपिंग इस भव में महान् दोष का भागी हुआ। पीछे मर कर नरक गया ||९७१॥ *कडारपिंगकी कथा * कांपिल्य नगरमें राजा नरसिंह था। उसका मंत्री सुमति नामका था। उसके एक कड़ारपिंग नामका पुत्र हुआ। वह अत्यंत कामासक्त था। एक दिन उसने कुबेरदत्त सेठकी सर्वांगसुंदरी प्रियंगुसुंदरी पत्नी को देखा। देखकर वह उसपर आसक्त हआ। समति मंत्रीने पत्रका हाल जानकर पहले तो कामवासनाको मनमें धिक्कारा किन्तु पुत्र के मोहमें आकर प्रियंगुसुंदरी को हस्तगत करनेके लिये उसके पति कुबेरदत्तको द्वीपांतरमें भेजना चाहा किन्तु प्रियंगुसुंदरी बुद्धिमती थी। उसने ताड़ लिया कि यह कामी कडारपिंगकी करतूत है । उसने पतिको समझाया कि द्वीपांतर जाने का केवल दिखावा करो। आगे की बात मैं सम्हाल लूंगी । कडारपिंग कुबेरदत्तको द्वीपांतर गया समझकर प्रियंगुसुंदरीके पास रातके समय आया। उस सुंदरीने पाखाने के कमरे को साफ-सुथरा कराके उसमें एक बिना निवारके पलंगपर एक चादर बिछा दिया था, प्रियंगुसुंदरी ने आये हुए कडारपिंगको उक्त पलंगपर बैठने
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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