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________________ मरणकण्डिका - २७० अर्थ - जो संसार के भयसमूह रूप असत्य का त्यागी है एवं निरुपम सुखकर के निमित्तभूत जिनमत की रुचि रखता है वही सर्व पापों को नष्ट कर देता है और मुनियों द्वारा स्तुत्य वचन विशेष को वश में कर लेता है।।८८३ ।। इस प्रकार सत्यमहाव्रत का प्रकरण पूर्ण हुआ। अधौर्य महाव्रत का विवेचन बह्वल्पं च परद्रव्यमदत्तं मा गृहीत्रिधा ! व्रतस्य ध्वंसने शक्तं, दन्तानामपि शोधनम् ।।८८४ ॥ अर्थ - दन्तशोधन हेतु बिना दिये ग्रहण की हुई तृण-शलाका भी व्रत का नाश करने में समर्थ है। अतः हे साधो ! वस्तु अल्प हो या बहुत; तुम मन, वचन, काय से बिना दिया परद्रव्य ग्रहण मत करो॥८८४ ।। दूर-स्थितं फलं रक्तं, यथा तृप्तोऽपि मर्कटः । ग्रहीतुं धावते दृष्ट्वा, भूयो यद्यपि मोक्ष्यति ॥८८५॥ तथा निरीक्षते द्रव्यं, यद्यत्तत्तजिघृक्षति । जीवस्त्रिलोक-लाभेऽपि, लोभ-ग्रस्तो न तृप्यति ।।८८६ ॥ अर्थ - जैसे भरे हुए पेट के कारण तृप्त हुआ भी बन्दर दूरस्थित लाल फल को देखकर ग्रहण करने के लिये कूदता है, यद्यपि पीछे वह उसे छोड़ देगा ; वैसे ही लोभग्रस्त मनुष्य जो-जो वस्तु देखता है, उसउस को ग्रहण करना चाहता है, वह त्रिलोक का लाभ होने पर भी तृप्त नहीं होता ।।८८५-८८६ ।। यथा विवर्धते वातः, क्षणेन प्रथते यथा । प्रथते क्षणतो लोभस्तथा मन्दोऽपि देहिनः 11८८७ ।। __ अर्थ - जैसे मन्द-मन्द चलने वाली वायु क्षण में ही विस्तीर्ण हो जाती है, वैसे ही जीव का मन्द लोभ भी क्षण मात्र में तीव्र हो जाता है।८८७ ।। प्रवृद्धे च ततो लोभे, कृत्याकृत्याविचारकः । स्वस्थ मृत्युमजानानः, साहसं कुरुते परम् ।।८८८ ।। अर्थ - लोभ वृद्धिंगत हो जाने पर कृत्य-अकृत्य अथवा युक्त-अयुक्त को न विचारने वाला मनुष्य अपनी मृत्यु को भी नहीं जानता हुआ अति साहस के कार्य कर डालता है।।८८८॥ सर्वोप्यथ हृते द्रव्ये, पुरुषो गत-चेतनः। शक्ति-विद्ध इव स्वान्ते, सदा दुःखायते तराम्॥८८९॥ अर्थ - जैसे शक्ति नामक शस्त्र से विद्ध हुआ मनुष्य अत्यन्त दुखी होता है, वैसे ही धन चुराये जाने पर सभी मनुष्य मृत्यु जैसी अवस्था को प्राप्त हुए मन में सदा अत्यन्त दुख का वेदन करते रहते हैं ।।८८९ ।। द्रषिणे ग्रहिलीभूय, म्रियतेऽथ हृते नरः। हाकार-मुखरं क्षिप्रं, नृणामर्थो हि जीवितम् ॥८९० ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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