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________________ मरणकण्डिका - १८८ हूँ। आचार्यदेव के समक्ष आलोचना कर देने से मायाशल्य दूर हो जाता है, मानकषाय जड़ से उखड़ जाती है, गुरुजनों के प्रति आदर भाव व्यक्त होता है और उनके पादमूल में रहकर व्रताचरण करने से मोक्षमार्ग की प्रसिद्धि होती है, अत: मैं आलोचना करके आज पुन: आपके कर-कमलों द्वारा दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। पदविभागी आलोचना का स्वरूप अपराधोस्ति यः कश्चिज्जातो यत्र यथा यदा। ब्रूते पदविभागीं तां, सूरौ तत्र तथा तदा ॥५५९॥ अर्थ - दीक्षा से लेकर आज पर्यन्त जिस क्षेत्र में, जिस काल में और जिस प्रकार से जो कोई भी अपराध हुए हैं, उन्हें उसी क्षेत्र, काल और उसी प्रकार से अर्थात् यथावत् गुरु के समक्ष कहना पदविभागी अर्थात् विशेषालोचना है॥५५९।। दृष्टान्तपूर्वक शल्य दूर न करने में दोष और दूर कर देने में गुण कण्टकेन यथा विद्धे, सर्वाङ्ग-व्यापि-वेदना। जायते निर्वृतस्तस्मिन्नुद्धृते शल्य-बर्जितः ।।५६० ।। दुःख-व्याकुलित-स्वान्तस्तथा शल्येन शल्यितः। निःशल्यो जायते यः स, लभते निवृति पराम् ॥५६१॥ अर्थ - जैसे कण्टक से बींधा हुआ मनुष्य सर्वाङ्गव्यापी पीड़ा से पीड़ित होता है और उस कण्टक के निकल जाने पर वही दुखी मनुष्य शल्य अर्थात् कण्टक से रहित होता हुआ सुखी होता है; उसी प्रकार जो मायावी मुनि कण्टक सदृश अपने दोषों को नहीं निकालता है, अर्थात् गुरु से अपने अपराधों की आलोचना नहीं करता है वह मुनि माया रूप दुख से व्याकुलचित्त रहता है और जब वही मुनि अपने दोषों की आलोचना कर शल्यरहित हो जाता है तब परम सुख को प्राप्त हो जाता है।।५६०-५६१।। शल्य के भेद माया-निदान-मिथ्यात्व-भेदेन त्रिविधं मतम्। अथवा द्विविधं शल्यं, द्रव्य-भावात्मकं मतम् ।।५६२॥ अर्थ - शल्य के तीन भेद हैं - माया शल्य, मिथ्यादर्शन शल्य और परभवगत भोगों की बांछा स्वरूप निदानबन्ध। अथवा शल्य के दो भेद हैं - द्रव्यशल्य और भावशल्य ॥५६२ ॥ भाव शल्य और द्रव्य शल्य के भेद भावशल्यं त्रिधा तत्र, ज्ञानादि-त्रय-गोचरम्। द्रव्यशल्यमपि त्रेधा, सचित्ताचित्त-मिश्रकम् ।।५६३ ।। अर्थ - उसमें भावशल्य के तीन भेद हैं - ज्ञान का शल्य, दर्शन का शल्य और चारित्र का शल्य । द्रव्य शल्य के भी तीन भेद हैं सचित्त द्रव्य शल्य, अचित्त द्रव्य शल्य और मिश्र द्रव्यशल्य ||५६३॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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