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________________ मरणकण्डिका - १६८ प्रभ्रष्ट-बोधिलाभोऽतश्चिरकालं भवार्णवे। जन्म-मृत्यु-जरावर्ते, जीवो भ्रमति भीषणे ।।४८५॥ अर्थ - हे क्षपकराज ! मायाशल्य पूर्वक आलोचना करने से समाधि नहीं होती। समाधि न होने से जो बोधि का लाभ पूर्व में हुआ था. नइ नाप हो जाता है, जिससे जन्म, मरण और जरा रूपी भँवरों से युक्त भयंकर भवसमुद्र में चिरकाल तक भ्रमण करना पड़ता है ।।४८५ ।। तीव्र-व्यथासु योनीषु, पच्यमानः स सन्ततम् । तत्र दुःख-सहस्राणि, दीनो वेदयते चिरम् ।।४८६ ।। अर्थ - समाधि नष्ट कर देनेवाले क्षपक का वह जीव उस भव समुद्र में भयंकर महावेदमा वाली चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता हुआ अनन्तकाल पर्यन्त दीन हुआ दुख भोगता है।।४८६ ।। मुहूर्तमप्यत: स्थातुं, सशल्येन न शक्यते। आचार्यपादयोर्मूले, तदुद्धर्तव्य-मञ्जसा ॥४८७॥ अर्थ - इसलिए हे क्षपक ! तुम्हें एक मुहूर्त भी शल्य सहित रहना योग्य नहीं है। आचार्यदेव के पादमूल में उस भाव शल्य को भली प्रकार शीघ्र ही निकाल देना चाहिए ।।४८७ ।। जिनेन्द्र-वचनश्रद्धा, जरा-मरण-भीरवः । निराकृत भय-व्रीडाः, सम्पन्नाव-मार्दवाः॥४८८॥ पुनर्भव-लतामूलमुत्पाट्य निखिलं बुधाः । संवेगोत्पन्न-वैराग्यस्तरन्ति भववारिधिम् ।।४८९॥ अर्थ - जो जिनागम के श्रद्धालु हैं; जन्म, बुढ़ापा और मरण के दुखों से भयभीत हैं; भय और लज्जा को छोड़ चुके हैं, आर्जव एवं मार्दव भावों से सम्पन्न हैं और संवेग तथा वैराग्य को प्राप्त हो चुके हैं ऐसे बुद्धिमान् क्षपक निर्दोष आलोचना करके पुनर्भव रूपी लता की जड़ को उखाड़कर फेंक देते हैं और संसार-सागर से पार हो जाते हैं ।।४८८, ४८९॥ यतः प्रसूचने (न सूचने) दोषं, दोषाणां सूचने गुणम् । एवं न तु दर्शयते, सूरिरायापाय प्रदर्शकः ॥४९० ॥ तदानी क्षपको नूनं, हेयादेय-विमूढधीः । निवर्तते न दोषेभ्यो, न गुणेषु प्रवर्तते ।।४९१ ॥ अर्थ - अपने दोष न कहने से संसार भ्रमणरूप भारी दोष है और गुरु को अपने दोष बता देने से रत्नत्रय विशुद्धि नामक महान गुण है, आयाषायदर्शी आचार्य यदि ऐसा नहीं समझाते हैं, तब वह क्षपक हेय और उपादेय के विषय में विमूढबुद्धि होता हुआ दोर्षों से दूर नहीं हो पायेगा और गुणों में प्रवृत्ति नहीं कर पायेगा।।४९०, ४९१॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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