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________________ मरणकण्डिका - १६५ प्रश्न - इस श्लोक के दृष्टान्त द्वारा क्या शिक्षा दी जा रही है ? उत्तर - इस श्लोक द्वारा परमोपकार आचार्य शपक को शिक्षा दे रहे हैं कि हे क्षपक ! तुम अपराध अर्थात् रत्नत्रय की शुद्धि के लिए ऐसे अज्ञ आचार्य का आश्रय ग्रहण कभी मत करो जो वाचाल है, मूर्ख एवं नवीन शिष्य मण्डली से सदा घिरे रहने के कारण गर्वोन्नत है तथा मूर्ख और अज्ञानी लोगों से ही पूज्य है, क्योंकि जैसे अनिपुण-अनाड़ी वैद्य रोगी को नीरोग नहीं कर सकता उसी प्रकार ऐसा आचार्य तुम्हारे अपराधों की शुद्धि कदापि नहीं कर सकता। तत: समीपे व्यवहार-वेदिनः, स्थितिर्विधेयाक्षपकेण धीमता। सिसिक्षुणा बोधि-समाधि-पादपो, मनीषितानेक-फल-प्रदायिनौ ।। ४७१ ।। इति व्यवहारी॥ अर्थ - इसलिए ज्ञान-चारित्र युक्त जो बुद्धिमान क्षपक मनोवांछित अनेक फल देनेवाले बोधि और समाधि रूप वृक्षों को वृद्धिंगत करना चाहता है, उसे व्यवहारज निर्यापकाचार्य के समीप ही रहना चाहिए।।४७१ ॥ इस प्रकार आचार्य के व्यवहारत्व गुण का वर्णन पूर्ण हुआ। ____ आचार्य के प्रकारकत्व गुणों का निर्देश प्रवेशे निर्गमे स्थाने, संस्तरोपधि-शोधने। उद्वर्तने परावर्ते, शय्यायामुपवेशने ।।४७२ ।। उत्थापने मल-त्यागे, सर्वत्र विधि-कोविदः । परिचर्या-विधानाय, शक्तितो भक्तितो रतः ॥४७३।। आत्मश्रममनालोच्य,क्षपकस्योपकारकः । प्रकारको मतः सूरिः, स सर्वादर-संयुतः ।।४७४ ।। अर्थ - जो आचार्य क्षपक के वसतिका से निकलने में, प्रवेश में, वसति, संस्तर और उपकरण के शोधन में, कमजोर क्षपक को करवट दिलाने में, सीधा-उलटा सुलाने में, शय्या पर बैठाने में, खड़ा करने में और मलमूत्र आदि त्याग कराने में तथा क्षपक की अन्य भी सब क्रियाओं को कराने में चतुर हैं, पण्डित मरण सम्बन्धी परिचर्या की विधि सम्पन्न कराने में सदा शक्ति और भक्ति से संलग्न रहते हैं, अपने श्रम का अर्थात् थकान आदि पर ध्यान न देकर सदा क्षपक का ही आदरपूर्वक उत्कृष्ट उपकार करते हैं, वे आचार्य प्रकारक या प्रकुर्वक कहे जाते हैं ।।४७२, ४७३, ४७४ ।। निपीड्यमानः क्षपकः परीषहै:, सुखासिकां याति सहाय-कौशलैः। यतस्ततस्तेन समाधिमिच्छता, निषेवणीया गुरवः प्रकारकाः ॥४७५ ।। इति प्रकारकः॥ अर्थ - क्षुधादि परीषहों से पीड़ित क्षपक सेवा एवं वैयावृत्य करने में कुशल आचार्यादि द्वारा ही सुख
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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