SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण सुहं मह वपु जगदिमवप्प पई विणू को कहा कलावियप्यु। ५६ विणु को पालइ इट्ट सिट्ठ को विसहइ गुरु तवचरण-णिटु पई विशु को जान तवभेठ को होह देव देवहि विदेव । पई विणु प्रणाह सामिय तिलोउ 37-24 मेषस्वर ( जयकुमार ) सुन्दर वाणो जिनवरकी स्तुति करता है । स्तुतिमें संसारको वृक्ष का रूप देते हए जयकुमार कहता है कि यह संसाररूपी घुस मिथ्यात्वफे मोजसे उत्पष्ट है, जो मोहकी अहोंसे फैला हुआ है, चार गतियां जिसके स्कन्ध है, और सुखको आशाएँ ही शाखाएं है, पुत्र-कला इसके प्रारोह हैं । इतना है ), शरीररूपी पत्तोंका यह त्याग-महण करता रहता है । पुण्य-पाप इसके फूल हैं । इस प्रकार सुखदुःखरूपी फलोंकी श्रीसे परिपूर्ण इस संसारवृक्षपर इन्द्रियरूपी पक्षी बैठे हुए हैं, ऐसे संसारवृक्षको भएनी ध्यान-अग्निसे भस्म कर देनेवाले हे जिन, आपकी, जय हो । "बहुमिसमास-वीय उप्पण्णउ । मोह विसाल मूलु वित्यिण्णत ॥ चजगह खंधू सुहासासाह तकल हाय पारीहरु : गहिय मुक्त वहुविह तणु पत्तउ । पुष्णपाव कुसुमेहि णि उत्तउ ॥ सोक्त दुक्स फल सिरि-संपण्णउ । इंदिय पक्सि उलहि पहिवण्णत ॥" पत्ता-इय भवत शाण-हयासणेण पई दड्डउ परमेसर । जिण जम्मि-जम्मि महूं तुई सरणु जय-जय जिय वम्मीसर ।। 28-37 प्रकृति या संसारका स्वरूप समझाने के लिए वृक्षका रूपक बहुत पहलेसे प्रयुक्त है। श्वेताश्वतर उपनिषदमें उल्लेख है। "ढा सुपर्णा समुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते, ___ तयोरभ्यः पिपलं स्वास्ति मनश्नन्यो अभिचाकयोति ।" दो मुन्दर पंखोंवाले साथ-साथ रहनेवाले मित्र पक्षो समान वृक्ष ( प्रकृति ) पर बैठे हुए है। उनमें से एक पीपलको स्वादसे खाता है और दूसरा उसे नहीं खाता हुआ हो प्रकाशमान है। भगवद्गीतामें संसाररूपी वृक्षको कल्पना इस प्रकार है ऊम्बमूलभधःशाखमश्वरयं प्राहुरव्ययम् । छान्दासि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ।। अपरमोध्वं प्रसूतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः ।। अषपच मूलान्यनुसंततानि कर्मानुबम्धीनि मनुष्यलोके ।। 15-1,2 न रूपमस्येह तपोपलभ्यते नान्तो न चादिनं च संप्रतिष्ठा । अश्वत्यमेन मुविस्तनूलमसङ्गशस्त्रेण दृढेन छिरवा 1 ततः पदं तत्परिमागितव्यं पस्मिन्गता न निवर्तन्त भूयः । तमेव चाचं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसूता पुराणी ।। 15.3,4 श्रीकृष्ण भगवान् कहते है-हे अर्जुन, जो मनुष्य उस संसाररूपी वृक्षको ( मूल सहित ) जानता है, यह वेद के तात्पर्य को जानता है। जिस वृक्षकी जड़ पर है (मायापति बासुदेव, सगुण रूपसे इस वृक्षके
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy