________________
२१. १०.५]
हिन्दी अनुवाद धाराओं में खून बह निकला, और उसका शरीर परतोपर लोटपोट हो गया। गाने संसारके बन्धनको काट देनेवाले पांच परम अक्षरोंवाला मन्त्र उसे सुनाया। विषने उसके प्राणोंकी शक्ति नष्ट कर दो। और उसका जीव कछ उपशम भाव धारण करता आ चला गया। और अलकापुरमें राजाके घर रानी मनोहराके उदरसे उत्पन्न हुआ। वहीं यह महाबल है भोगरसवाला। अपने निदानके अधीन होनेके कारण वह इसे नहीं छोड़ता।
पत्ता-मिथ्यात्व मनको कुटिलता और निदानके निबन्धनसे यह विश्व सन्तप्त है और आपत्ति उठाता है वैसे हो जेसे बन्धनसे वनगज-कुल ॥८॥
नास्तिकतावादी दुर्मति सम्भिन्नाति महामति और स्वयंमति आदि मन्त्रियोंने मु नदण्डोंसे चौपकर मास्माको कीचड़ में डाल दिया था, आपने निकालकर पवित्र जलसे नहला दिया है और उठाकर सिंहासन पर स्थापित कर दिया है। आज रात तुम्हारे स्वामीने एक सपना देखा है, उसने पाप नष्ट कर दिया है। सोकर उठने के बाद कुछ भी नहीं बोलता राजा चिन्तासे व्याकुल बैठा है। जो निमित्त देखा है वह किसीसे नहीं कहता। वह तुम्हारे आनेकी बाट देख रहा है। तुम शीघ्र ही राजाके घर जाओ, उसी प्रकार जिस प्रकार घूमता हुआ इन्दीवरके पास जाता है। यदि वह राजा स्वप्न नहीं कहता। तब पहला सपना तुम्हीं कह देना । और लो उसकी क्षय नियति आ पहुंची अब वह केवल एक माह जोवित रहेगा। तुम भ्रान्ति मत करो। वह धर्म स्वीकार कर लेगा। और कुछ ही दिनों में त्रिलोक-गुरु हो जायेगा । तुम शोन जाकर उसे सम्बोधित करो। वह मध्य अनन्त सुख प्राप्त करेगा।" मुनिवरके इन बोलोंको सुनकर उसने दु:खसे पीड़ित अपने हृदयको ढाढस देकर और जिन-वचनकी मादकर जाने की इच्छासे आकाशको देखकर।
पत्ता-दोनों मुनियोंकी प्रशंसा कर और नमस्कार कर मन्त्रीवर शोध चला। प्रभु, पवित्र गुरु दर्शन-जलकी इच्छा करता है और आकाशरूपी सरोवर देखता है ।।९।।
इतने में आकाशमें आता हुआ विद्यापर राजाको दृष्टिमें आया । भिन्नमति वह तरहतरहसे सोचता है ? कि क्या है गिरिवर है ? नहीं नहीं यह आकाशतल मति है ? क्या घन है ? नहीं नहीं प्रतिहतपवा है? क्या पक्षी है ? नहीं नहीं ? यह लम्बे हाथोंवाला है। इस प्रकार जबतक वह क्रमसे जानता है तबतक पास आये हुए स्वयंबुद्धको उसने पहचान लिया । नृपबरने घटकर उसका आलिंगन किया, अपने सिरसें राजाने भी उसको प्रणाम किया और बोला, "आपने