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३६. २०. १९]
हिन्दी अनुवाद
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मुनिमार्गका प्रकाशन करनेवाले ऋषभको, कामदेवके द्वारा मुक्त बाणोंके विजेता अजितनाथको, संसारका नाश करनेवाले सम्भवनाथको, संसार और धरतीको आनन्द प्रदान करनेवाले अभिनन्दनको, अनिन्दित मोक्षगतिको चाहनेवाले तथा कुमतिको छोड़नेवाले सुमतिको, केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीको धारण करनेवाले पद्मप्रभ भगवान्को, बन्धनसे रहित सुपाश्वको नमस्कार करो। चन्द्रमाको विशिष्ट कान्तिको नष्ट करनेवाले चन्द्रप्रमको, यशःसमूहमे समान बुद्धिवाले सुविधिको, अपने शीतल वचनोंसे संसारके रोगोंको दूर करनेवाले शीतलनायकी में वन्दना करता है। कल्याण-प्रवृत्तिके विषाता श्रेयांसको, त्रिभुवनके पिता इन्द्र के द्वारा पूज्य, पूजनीय श्रीवासु. पूज्पको, तपके तापके सहनकर्ता पवित्र विमलनायको, मनको घुमानेवाले प्रचुर और भयंकर अज्ञान अन्धकारफे नष्ट करनेवाले ऐश्वर्य सम्पन्न अनन्तनाथको मैं नमस्कार करता हूँ। दस धोके उपदेशक और स्व-परको जाननेवाले धर्मनाथको में प्रणाम करता है। स्वयं शान्त और विश्व शान्तिः के विधाता सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथको, अत्यन्त सूक्ष्म जीवोंके प्रति दया करनेवाले, तरहतरह-को (अन्तः बाह्य) प्रन्थियोंसे परिपूर्ण पन्थोंको दूर करनेवाले कुन्थुनायको, शममावके धारक, अचल मोहवृक्षको उखाड़नेवाले अरहनाथको, मालती पुष्पकी मालाओंसे अंचित मल्लिनाथको, सुव्रती मुनि सुवतको, चक्रवतियोंके द्वारा प्रणम्य विश्वस्वामी नमिनायको, गुणरूपी रथको नेमि नेमिनाथको, पाशोंके लिए हाथ में तलवार लेनेवाले पारवनाथकों तथा शत्रुके लिए भी धर्मको श्री दिखानेवाले, व्रतोंसे नियमोंकी उत्तरोत्तर वृद्धि करनेवाले, अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान को मैं प्रणाम करता हूँ।
पत्ता-जिस प्रकार पृथ्वीमण्डलके चन्द्र भरतराजाने समस्त जिनेश्वरोंको वन्दना की, उसी प्रकार शान्त कषाय जयकुमार राजाने पुष्पदन्त योगोश्वरों (तीर्थंकरों) को धन्दना की ॥२०॥
श्रेसठ महापुरुषोंके गुणाकारोंसे युक्त इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदम्त द्वारा विरचिव और महामण्य भरत द्वारा अनुमत महाकाम्पका जयसुबोचना तीर्यपादन
नामका छत्तीसवाँ परिषद समासामा ॥१॥