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________________ २४. ५. १३] हिन्दी अनुवाद _ "यह विविध देवोंवाला ईशान स्वर्ग है। यह श्रीमह विमान चित्रित है। यह दिव्य वृक्षोंवाला नन्दनवन है । यह बोलता हुआ सुन्दर कोकिलगण है। यह मैं ललितांग देव रहा । यहाँ वसता हुआ, यहाँ रमण करता हुआ । स्तनतलीपर आन्दोलित हारसे सुन्दर यह हमारी प्यारी स्वयंप्रभा देवी है । देवोंके इन्द्र यह अच्युतनाथ हैं। यह परमेश्वर इन्द्र चित्रित हैं । यह मुझमें लीन लान्तव ब्रहावर युगन्धर देवका कथानक कह रहा है। ये हम दोनों बैठे हुए हैं। कथा सुनकर अपने मनमें सन्तुष्ट हैं । ये हम विश्वके स्तम्भ सुमेरु पर्वतपर गये हुए हैं, ये हम जिनेन्द्रक अभिषेक में लगे हुए हैं। यह अंजन महीधर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, इसे नन्दीश्वर द्वीप कहा जाता है। यहां हम दोनों सुन्दर मुखवाले इन्द्र के साथ वन्दना भक्तिके लिए गये थे। यह पर्वतश्रेष्ठ अम्बरविलक है। यह आदरणीय पिहिताश्रय चित्रित हैं । यहाँ उनके चरणकमलोंको प्रणाम करते हुए और जिनधर्मको सुनते हुए हम दोनों बेठे हुए हैं। पत्ता-ग्रह मैं निर्दोष नाट्याचार्य हूँ, और यह स्वयंप्रभा नृत्य कर रही है। विसिवनके जिरवरमघनमें धरती चरणकमलोंसे शोभित है ।।४।। दूसरी जगह जो कोड़ा मैंने आरम्भ की थी वह यहां नहीं लिखी गयी। रति नूपुरके शब्दसे रोमांचित मयूर जो यहाँ नाचा था, वह यहां नहीं लिखा गया । हम लोगोंके शरीरके परिमलसे परिमित भ्रमरका गुंजन यहां नहीं लिखा गया। गुरुजनोंके आगमकी सूचना, और लज्जाका उपदेश देनेवाला शुक यहां चित्रित नहीं किया गया। यहा कानोंका आभूषण यह कमल नहीं लिखा गया, जो वधुओंके नेत्रोंसे भी अधिक महनीय शोभित है। यहाँ प्रतिबधूको चेष्टा चित्रित नहीं है, यहांचर प्रणयकोप चित्रित नहीं है यहीपर मालोंकी पथरचनाका मण्डन और किसलयताइन लिखित नहीं है । यहाँपर विरहातुर मुंह लिखित नहीं है, यहाँ काँपता हुआ प्रिय मुंह नहीं चित्रित किया गया, यहाँ भेजा गया आभूषण नहीं चित्रित किया गया, यहाँपर विरहसे आतुर मुंह नहीं लिखा गया, यहाँपर दुतीका सम्भाषण नहीं लिखा गया। यहां एक ही चीज लिखी गयी है और वह मुझपर कृपा करनेवाला मुझपर किया गया पादप्रहार। मैंने पैरोंपर पड़कर उसका कोष दूर किया था और यहाँ पर मैं उसके द्वारा क्षमा किया था। रूपको बिभूति स्वयंप्रभा देवी अन्यत्र मानधी हुई है । माप ( सौन्दर्यके ) के निषान नेत्र क्या दूसरेके हैं । दूसरा कौन मेरा चरित्र शिख सकता है?
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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