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________________ सार्यकाल में वह मयूरयन्त्र राजपुर के श्मशान में उतरा । वहीं घनघोर अन्धकार के बीच रानी ने कथा-नायक जीवन्धर को जन्म दिया। एक देवी ने चम्पकमाला दासी के वेष में आकर रानी की परिचर्या की। सद्योजात पुत्र को नगर का गन्धोत्कट सेठ ले गया। उसने अच्छी तरह उसका पालनपोषण किया । रानी विजया दण्डकवन में एक तापसी के वेष में रहने लगी । जीवन्धर ने विद्याध्ययन किया । आर्यनन्दी गुरु ने उनकी अन्तरात्मा को उत्तम संस्कारों से सुसंस्कृत विया। गन्धर्वदत्ता तथा गुणमाला के साथ उनका विवाह हुआ। झाष्ठांगार उनकी प्रभुता से मन ही मन खीझता था। एक बार उसने जल्लादों को आदेश दिया कि इसे जान से मार दें। जल्लाद श्मशान में ले गये परन्तु जीवन्धर कुमार के द्वारा उपकृत सुदर्शन यक्ष उन्हें आकाश-मार्ग से अपने स्थान पर ले गया और बड़े सम्मान के साथ उनकी सेवा करने लगा। कुछ समय बाद तीर्थयात्राके उद्देश्य से जीवन्धर कुमार यत्र-तत्र भ्रमण करते रहे । इस सन्दर्भ में उनके कई विवाह हुए । अन्म से ही बिछुड़ी माता विजया के साथ उनका मिलन हुआ । एक वर्ष बाद वैभव के साथ वे राजपुर वापस आये। वहाँ दो कन्याओं के साथ उनका विवाह हुआ। अन्त में मन्त्रणा के उद्देश्य से अपने मामा गोविन्दराज से मिलने के लिए विदर्भदेश गये और गुप्त मन्त्रणा कर गोविन्दराज के साथ राजपुर वापस आये। यहाँ लक्ष्मणा के स्वयंवर में चक्र वेषकर उसके साथ विवाह किया और काष्ठांमार के साथ युद्ध कर उसे समाप्त किया। अपना राज्य पाकर में प्रमुदित हुए। सुदर्शन यक्ष ने जीवन्धर स्वामी का राज्याभिषेक किया। उन्होंने बारह वर्ष के लिए पृथिवी का लगान छोड़ दिया। प्रजा का जीवन मानन्द से व्यतीत होने लगा। अनन्तर संसार से विरक्त हो उन्होंने दीक्षा धारण की और तपश्चर्या कर राजगही के पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया। ___ इस प्रबन्ध में उनका आख्यान उत्तरपुराण के अनुसार दिया गया है और टिप्पण में अन्य ग्रन्थों के तुलनात्मक टिप्पण देकर उसकी विशेषता सिद्ध की गयी है। द्वितीयाध्याय द्वितीयाध्याय के प्रथम स्तम्भ का नाम साहित्यिक सुषमा है । इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम धर्मशर्माभ्युदय की काव्य-पीठिका का परिचय देने के अनन्तर उसके कान्यवैभव का प्रदर्शन किया गया है । इस वैभव के प्रदर्शन में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, श्लेष, परिसंख्या, अर्थान्तरम्यास, भ्रान्तिमान् और दीपक मावि अलंकारों के महाकाव्यगत उदाहरण देकर सिद्ध किया गया है कि यह महाकाव्य साहित्यिक सुषमा से अत्यन्त सुशोभित है । अलंकार ही नहीं, घ्यनि की सुषमा भी इसकी शोभा बढ़ा रही है। इसके अनन्तर 'जीवन्धरचम्मू की काव्यकला' तथा 'जीवन्धरचम्पू का [२]
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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