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नहीं हुई। दम्पती का मन उत्कण्ठित होने लगा । प्रचेतस् मुनि ने राजा को बताया कि तुम्हारे यहाँ तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म होनेवाला है। इसी सन्दर्भ में उन्होंने धर्मनाथ के पूर्वभवों का वर्णन किया । समय आने पर रानी सुव्रता ने धर्मनाथ को जन्म दिया । सर्वत्र आनन्द छा गया। देवों ने जन्मकल्याणक का उत्सव किया। इस प्रकरण में सुमेरु पर्वत, देवसेना तथा क्षीरसमुद्र का उत्तम वर्णन हुआ है। धर्मनाथ तोर्थंकर ने बाल्यकाल को व्यतीत कर ज्यों हो यौवन अवस्था में पदार्पण किया त्यों हो उनके शरीर की आभा दिन दूनी रात चौगुनी विस्तृत होने लगी ।
विदर्भदेश के राजा प्रतापराज ने अपनी पुत्री श्रृंगारवती के स्वयंवर में युवराज धर्मनाथ को आमन्त्रित करने के लिए दूत भेजा। पिता की आज्ञानुसार युवराज धर्मनाथ ने विदर्भदेश के लिए प्रस्थान किया । इस सन्दर्भ में कवि ने गंगा नदी का और दशम सर्ग में विन्ध्याचल का नाना छन्दों में वर्णन किया है। ऋतुचक्र, वनक्रीड़ा, पुष्पात्रषय, जलक्रीड़ा, चन्द्रोदय, मधुपान, सुरसगोष्ठी तथा प्रभात आदि काव्य के विविध अंगों का अलंकार पूर्ण भाषा में विषम किया है। दिव
युवराज की बड़े सम्मान के साथ अगवानी की। स्वयंवर में अनेक राजकुमार एकत्रित हुए। सखियों के साथ श्रृंगारवती ने स्वयंवर - मण्डप में प्रवेश किया । सखी ने सब राजकुमारों का वर्णन किया । अन्त में शृंगारवती ने मुवराज धर्मनाथ के गले में वर-माला अल दी। युवराज ने वैभव के साथ राजभवन में प्रवेश किया। वर-वधू को देखने के लिए नारियों के हृदय उत्कण्ठा से भर गये । विधिपूर्वक विवाह संस्कार हुआ। इसी बीच पिता महासेन का पत्र पाकर धर्मनाथ पत्नी सहित विमान द्वारा घर चले गये । कुछ असहिष्णु राजकुमारों ने सुषेण सेनापति का प्रतिरोध किया परन्तु मे बुरी तरह पराजित हुए ।
धर्मनाथ संसार से विरक्त दीक्षा कल्याणक का उत्सव
बहुत समय तक राज्य करने के बाद उल्कापात देख हो तपश्चर्या करने के लिए उद्यत हुए। देवों ने उनके किया । कुछ समय बाद उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और वे चराचर विश्व के ज्ञाता हो गये । समवसरण की रचना हुई। उसमें स्थित होकर दिव्यव्त्रनि के द्वारा उन्होंने तस्वोपदेश दिया । अन्त में वे सम्मेदाचल से मोक्ष को प्राप्त हुए ।
जीवन्धरचम्पू का आख्यान
राजपुर नगर में राजा सत्यन्धर रहते थे । उनकी रानी का नाम विजया था । राजा सत्यन्धर, विषयासक्ति के कारण, राज्य का भार काष्ठांगार को सौंपकर अन्तःपुर में रहने लगे। रानी विजया ने गर्भ धारण क्रिया । जब प्रसन का समय आया तब कांगार ने राजद्रोह वश राजा सत्यन्धर को सेना से घेरकर मार डाला। युद्ध में जाने के पूर्व सत्यन्धर ने एक मयूरयन्त्र के द्वारा गर्भवती विजया को आकाश में उड़ा दिया ।
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