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________________ है। अन्त में काण्ठांगार को दुरभिसन्धि के लक्ष्य हो मृत्यु को प्राप्त होते हैं । राजा को धर्म, अर्थ और काम का पारस्परिक विरोध बचाते हुए प्रवृत्ति करना चाहिए । जहाँ इनके विरोध की उपेक्षा होती है वहाँ पतन निश्चित होता है । राजा सत्यम्घर इनके उदाहरण हैं। २. विजयारानी विजयारानी विदेह के राजा गोविन्द महाराज की बहन और राजा सत्पन्धर की प्रमुख रानी थो । यद्यपि राजा सत्यधर की भागारति और अनंगपत्ताका नाम की दो रानियाँ और भी थीं' परन्तु पति का अगाध प्रेम इसे ही प्राप्त था। इसने तीन स्वप्न देखें, जिनमें प्रथम स्वप्न का फल राजा की मृत्यु या। उसे सुनकर वह बहुल दुखी हुई परन्तु राजा के उपदेश से प्रणयलीला पूर्ववत् चलती रही। राजा सत्यन्धर का पतन होने पर श्मशान में पुत्र की उत्पत्ति हुई। विजयारानी का जीवन बड़ा कष्टसहिष्णु और विपत्ति में श्यन नहीं होनेवाला दिखता है। आत्मगौरव की तो वह प्रतीक ही जान पड़ती है। राजा की मृत्यु और सद्योजात पुत्र का गन्धोत्कट सेठ के यहाँ स्थानान्तरण होने पर जब वक्षी उसे अपने भाई के घर जाने की सलाह देती है जब वह आत्मगौरय की रक्षा के लिए उस सलाह को ट्वारा देती है और दण्ठक बन के एक तपोवन में तापसी के वेष में रहना पसन्द करती है । उसमें एक नीति यह भी मालूम होती है कि वेषान्तर से रहने में काष्ठोगार को उसका पता न चल सके । अन्यथा उसके रहते काष्ठांगार सदा संशयालु रहता और उसके मामा का प्रयत्न करता रहता । अन्त में पुत्र के साथ माता का मिलन होता है। पुत्र, पिता का राज्यसिंहासन प्राप्त करता है और विजयारानी पुनः अपने महलों में प्रवेश करती है। अन्तिम अवस्था में विजयारानी आयिका के व्रत धारण करती है। विजयारानी के जीवन में सुख-दुख का बड़ा सुन्दर समन्वय दिखाई देता है। ३. काष्टांगार काष्ठांगार जीवन्धरचम्पू का प्रतिनायक है। यह बड़ा कृतघ्न मन्त्री है । राजा सत्यन्धर ने जिसे मन्त्री पद पर आसीन किया और अन्त में अपना सारा राज्म-पाट भी जिसके अधीन कर दिया उसका इस तरह कुतघ्न होना नीचता की पराकाष्ठा है । केवल राज्य प्राप्त कर स्वायत्त होने की आकांक्षा मनुष्य का इतना पतन नहीं करा सकती, इसका दूसरा भी कारण होना चाहिए, जिसे उत्तरपुराण में गुणभद्राचार्य ने स्पष्ट किया है। महाराज सत्यधर का एक रुद्रदत्त नाम का पुरोहित था, जो भविष्यवक्ता भी था। उसने काष्ठांगार को बतलाया था कि राजा सत्यधर की विजयारानी के गर्भ से १. उत्तरपुर के आधार पर । महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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