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________________ उत्पन्न हुक्षा पुत्र तुम्हारा प्राणघातक होगा। राजा सत्यन्पर के रहते वह विजया और उसके भावी पुत्र को नष्ट करने में समर्थ नहीं था अतः उसने सर्वप्रथम राजा सत्यन्धर को ही नष्ट करने का उपाय रथा । सत्य घर को मारकर वह उनके राज्य का अधिकारी हो गया। श्मशान में उत्पन्न पुत्र उसी रात्रि को गन्धोत्कट सेठ के अधीन हो गया और रानी विजया दण्डक वन में तापसी के देष में रहने लगी। काण्ठांगार ने समझा कि मैंने राजा को मार डाला है और रानी मसूरयन्त्र में बैठकर गयी थी अतः गिरने पर उसका और उसके गर्भस्थ बालक का प्राणघात स्थय हो गया होगा । इस प्रकार निश्चिन्त होकर अपना राज्य शासन चलाता है। __ आतंक से किसी की अकीति दबती नहीं है उलटी फैलती है। काष्टांगार को भी अकीर्ति राजघातक के रूप में सर्वत्र फैल गयी अतः वह अन्त में विजयारानी के भाई गोविन्द महाराज के पास सन्देश भेजता है कि राजा का धात एक उन्मत्त हाथी ने किया है और उसका फलंक मुझे लगाया जा रहा है। आप आकर हमारे इस कलंक का परिमार्जन कर दीजिए। तबतक जीयाधर भी वयस्क होकर अपने मातुल गोविन्द महाराज के घर पहुंच चुके थे। फाष्ठांगार के कपट पत्र का उपयोग करते हुए, मित्र के नाते एक बड़ी सेना साथ लेकर गोविन्द महाराज काहांगार के यहां आये। वहीं उन्होंने अपनी पुत्री लक्ष्मणा का स्वयंवर रचा । जीवन्धर ने चन्द्रकवेव को वेधकर लक्ष्मणा की वरमाला प्राप्त की। इससे उत्तेजित हो काष्ठांगार भड़क उठा । इधर युद्ध की तैयारी पूरी थी अत: युद्ध हुआ और काळांगार उसमें मारा गया । ४. जीवन्धर आप महाराज सत्पन्घर और विजयारानी के पुत्र हैं । उत्तरपुराण के उल्लेखानुसार इन्होंने एक हंस के बच्चे को उसके माता-पिता के पास से पकढ़वा लिया था। बच्चे का पिता हंस इस दुख से दुखी होकर आकाश में केकार कर रहा था अतः इसे उन्होंने अपने किसी सेवक से मरवा दिया। पीछे चलकर गधचिन्तामणि के अनुसार पिता के और उत्तरपुराण के अनुसार माता के उपदेश से इन्होंने सोलह दिन बाद उस हंस-शिशु को उसको माता के पास भेज दिया। करनी का फल सबको मिलता है, अत: जीवघर को भी उसके फलस्वरूप उत्पत्ति के पूर्व ही पिता की मृत्यु तथा माता से सोलह वर्ष का विछोह सहन करना पड़ा। जीवन्धर मोक्षगामी पुरुष थे, करुणा इनको रग-रग में भरी भी। कालकूट भील के द्वारा गायों के चुरा लिये जाने पर जब गोपों के परिवार काष्ठांगार के द्वार पर रोते हैं और उसकी अकर्मण्य सेना जब पराजित होकर लौट आती है तब आप अपने सखाओं के साथ जाकर भील को परास्त करते हैं और गोपों का पशुधन वापस लाकर उन्हें देते हैं । ___ एक मरणोन्मुख कुक्कुर को देखकर उनकी करुणा जाग उठती है और उसे वे पंचनमस्कार मन्त्र सुनाकर कृतकृत्य करते हैं। कुक्कुर का जीव मरकर सुदर्शन यक्ष
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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