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साथ परिचय दिया गया है। अन्य--'चम्पू रामायण,' 'भागवतचम्पू तथा 'आनन्दवृन्दावनचम्पू' यावि प्रसिद्ध चम्पूकाव्यों का उनके कर्ता के साथ नामोल्लेख किया गमा है। महाकवि हरिचन्द्र-व्यक्तित्व और कृतित्व
महाकवि हरिचन्द्र का परिचय देते हुए कहा गया है कि वे नोमक वंश के कायस्थ कुलोत्पन्न आर्द्रदेव और रथ्या के पुत्र थे । इनके छोटे भाई का नाम लक्ष्मण था । गुरु के प्रसाद से इन्हें वासिद्धि प्राप्त हुई थी । यह दिगम्बर जैन धर्म के अनुयायी थे । इनका समय ११वीं और १२वीं शताब्दी के मध्य आंका जाता है। इनके रचे हुए 'धर्मशभियुदय' और 'जीवन्धरचम्पू' ये दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं । 'धर्मशर्माभ्युदय' महाकाव्य है और 'जीवन्धरचम्मू' यथानाम चम्पूकाव्य है ।
धर्मशर्माभ्युदय में जन धर्म के पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित्र लिखा गया है और जीवन्धरचम्पू में भगवान महावीर स्वामी के समकालीन क्षत्रिय-शिरोमणि श्री जीवन्धर स्वामी का चरित्र किन दिया गया है। सुन्टा निदानों प्रमुख रूप से थी नाथूरामजी प्रेमी का अभिमत था कि जीवन्धरचम्मू किसी अन्य लेखक की रचना है परन्तु दोनों ग्रन्थों के वर्णन-सादृश्य से यह सिद्ध किया गया है कि ये दोनों प्रन्थ एक ही हरिचन्द्र की रचनाएँ हैं। दोनों की भाषा और भाव का सादृश्य, अनेक उद्धरण देकर सिद्ध किया गया है । जीवन्धरचम्पू का प्रकाशन प्रेमीजी के जीवनकाल में हो चुका था और उन्हीं की सम्मति से हुआ था। जब मैंने छपने के पूर्व उसकी प्रस्तावना उनके पास भेजी तब उन्होंने धर्मशर्माम्युदय और जीवन्धरचम्पू के सुलनात्मक उद्धरण देखकर उक्त तथ्य को स्वीकृत कर लिया था।
___महाकवि हरिचन्द्र का व्यक्तित्व महान् था। कालिदास, माघ, भारवि आदि महाकवियों की श्रेणी में इनका नाम लिया जाता है । महाकाव्य के समस्त लक्षण इनकी कृतियों में अवतीर्ण है । पण्डितराज जगन्नाथ ने काव्य के प्राचीन-प्राचीनतर लक्षणों का समन्वय करते हुए अपने रसगंगाधर में काव्य का लक्षण' लिखा है-'रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करनेवाला शब्द-समूह कान्य है। वह रमणीयता चाहे अलंकार से प्रकट हो, चाहे अभिधा, लक्षणा या व्यंजना से। मात्र सुन्दर शब्दों से या मात्र सुन्दर अर्थ से काव्य, काव्य नहीं कहलाता किन्तु दोनों के संयोग से हो काव्य, काश्य कहलाता है। महाकवि हरिचन्द्र ने अपने कायों में शब्द और अर्थ-दोनों को बड़ी सुन्दरता के साथ संजोया है । काव्यवेभव
रस, ध्वनि, गुण, रीति और अलंकार-साहित्य की इन समस्त विधाओं का इनकी रचनाओं में अच्छा निर्वाह हुआ है । उपमा-उत्प्रेक्षा आदि अर्थालंकार, अनुप्रास