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________________ अभ्युक्यनामान्त काश्यों को परम्परा अभ्युदयान्त नामनाले कामों में जिनसेन का 'पार्वाभ्युदम' बहुत प्रसिद्ध है। यह कालिदास के मेघदूत की समस्या पूर्ति के रूप में उपलब्ध है। इसमें मेघदूत के दोनों सण्ट समाये हुए है । नवमी शती के महाकवि शिवस्वामी का ‘कल्फिणाभ्युदय' महाकाव्य है। इसका कथानक बौद्धों के 'अवदानों से गृहीत है। १३वीं शती में दाक्षिणात्य कवि मेंकटनाय वेदान्तदेशिक ने 'यादवाम्युचय' नामक २४ सर्गात्मक महाकाव्य लिखा है, जिस पर अप्पम दीक्षित ने (ई. १६००) एक विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी है। इसी १३ पाती में महाकार अशा भायु मारक काव्य की रचना हुई है पर अभी इसकी उपलब्धि नहीं हुई है। ईसवीय १४वीं शती के राजनाथ ने 'सालवाभ्युदय' नामक महाकाव्य की रचना की है जिसमें विजयनगर के वीर सेनापति साल्व नरसिंह का चरित्र निबद्ध है। यशोवर्मा का 'रामाभ्युदय', वामनभट्ट बाण का 'नलाम्युदय', राजनाथ तृतीय का 'अच्युतरामाभ्युदय' और रघुनाथ की विदुषी पत्नी रामभद्राम्बा का 'रघुनाथाभ्युदय' ग्रन्थ प्रसिच है। इसी परम्परा में महाकवि हरिचन्द्र का यह 'धर्मशर्मास्युदय' महाकाव्य है जिसमें पन्द्रहवें जैन तीर्थकर धर्मनाथ का चरित्र निषद्ध किया गया है। महाकाव्य-परिभाषानुसन्धान धर्मशर्माभ्युदय में महाकाव्य को परिभाषा पूर्ण रूप से संघटित है। घीरोदात्त नायक के गुणों से साहित, क्षत्रिय-वंशोत्पन्न धर्मनाथ तीर्थकर इसके नायक है। शान्तरस अंगी रस है, शेष रस अंग रस के रूप में यथास्थान संनिविष्ट हैं । मोक्ष इसका फल है, नमस्कारात्मक पद्यों से इसका प्रारम्भ हुआ है। इसकी दुर्जन-निन्दा और सज्जन-प्रशंशा उम्मचकोटि की है। सगों की रचना एक छन्द में हुई है और सर्गान्त में छन्द वैषम्य है । दशम सर्ग नाना छन्दों में रचा गया है। सन्ध्या, ऋतु, वन, समुद्र, सम्भोग और विप्रलम्भश्रृंगार, मुनि, स्वर्ग के देव-देवियां, युद्ध, प्रयाण, विवाह तथा पुत्र-जन्म आदि वर्णनीय विषयों का सुन्दर वर्णन इसमें हुआ है। अहिंसा सिद्धान्त के प्रतिकूल होने से इसमें मृगया-शिकार और वैदिक अज्ञों का वर्णन नहीं किया गया है । नायक के नाम पर इसका धर्मशर्माभ्युदय नाम रखा गया है और सर्गों के नाम वर्मा विषय के अनुसार हैं। १. 'संस्कृत-काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान' (ले. , नेमिचन्द्रजी बी. लिट. आरा) के आधार से-- भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी से प्रकाशित)। २. महाकाव्य की परिभाषा साहित्यदर्पण के परिच्छेद ६ में स्लोक १५५ से ३२५ सक दृष्य है। २० महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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