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पर कालिदास के रघुवंश, भारवि के किरातार्जुनीय, वीरनन्दी के चन्द्रप्रभचरित, मात्र के शिशुपाल वध की शैली का प्रभाव है. इसका आगे विचार किया जायेगा।
महाकवि हरिचन्द्र की रचनाएँ
महाकवि हरिचन्द्र की दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-१. धर्मशर्माभ्युदय और २. जीवन्धरचम्पू । यद्यपि स्व. नाथूरामजी प्रेमी के अनुसार जीवन्धरचम्पू के कर्ता, धर्मशर्माभ्युदय के कर्ता से भिन्न हैं परन्तु धर्मशर्माभ्युदय और जीवन्धरचम्पू के भावों तथा शब्दों को समानता से जान पड़ता है कि दोनों का कर्ता एक होना चाहिए। इसके अतिरिक्त जीवन्धरपम्प की जो हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है उसके पुष्पिका-पाक्यों में इसके कर्ता हरिचन्द्र का ही उल्लेख किया गया है। प्रन्थान्त में ग्रन्धका ने स्वयं अपने नाम का उल्लेख इस प्रकार किया है
अष्टाभिः स्वगुणरयं कुरुपतिः पुष्टोऽथ जीवन्धरः सिद्धः श्रीहरिचन्द्र वाङ्मयमधुस्यन्दिप्रसूनोच्चयः । भक्त्याराधितपादपपयुगलो लोकातिशायिप्रभा निस्तुल्यां निरपायसोस्यलहरी संप्राप मुक्तिश्रियम् ॥५८।।
-जी, पं. लम्भ ११ इस प्रकार जो अपने आ3 गुणों से पुष्टि को प्राप्त हुए थे, और हरिचन्द्र कवि ने अपने मधुर-वचन-रूपी पुष्पों के समूह से भक्तिवश जिनके दोनों चरण-कमलों की पूजा की थी वे जीवधर स्वामी सिद्ध होकर लोकोत्तरप्रभा से युक्त, अनुपम तथा अविनाशी सुख की परम्परा से सुशोभित मतिरूपी लक्ष्मी को प्राप्त हए ।
__ कीथ महोदय भी हरिचन्द्र को ही जीवन्धरचम्पू का कर्ता मानते हैं। यह कहना कि धर्मशर्माभ्युदय को देखकर किसी परवर्ती कवि ने उसके भाव और शब्दों को आत्मसात् कर इसकी रचना की है, उचित नहीं जान पड़ला । मर्मज्ञ विद्वान् की दृष्टि में यह बात अनायास आ जाती है कि यह बाव कवि ने अन्मत्र से ली है और यह स्वतः लिखी है । अन्ततोगत्वा नकल नकल ही है। जिस प्रकार सोमदेव के यशस्तिलकचम्पू के नीविभाग और नीति-वाक्यामृत में एककतक होने के कारण पद-पद पर सादृश्य पाया जाता है उसी प्रकार जीवन्धर बम्पू और धर्मशर्माभ्युदय में एककर्तृक होने से पद-पद पर सादृश्य पाया जाता है | दोनों ही ग्रन्थों में रस का प्रवाह, अलंकार को पृट और शब्द-विम्यास की शैली एक-सी है। यहाँ में दोनों ग्रन्थों के कुछ अवतरण देकर इस विषय को स्पष्ट कर देना उचित समझता हूँ । विस्तार के भय से अवतरणों का अनुवाद नहीं दिया जा रहा है
१. जैनसाहिरय का इतिहास, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, सम्बई । २. ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, मम्बई। ३. देरनो, पं. सीताराम अवराम जोशी का 'संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' ।
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महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन