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________________ उपासकाध्ययनांग का विस्तृत और समयानुरूप वर्णन है । तृतीय समुच्छ्वास में राजनीति की विशद चर्चा है । आचार्य सोमदेव का नोतिवाक्यामृत नीतिशास्त्र का उत्तम ग्रन्थ है । इसके सूप, प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने कितने ही स्थलों पर उद्धृत किये हैं। इनका एक 'अध्यात्मामृततरंगिणी' ग्रन्थ भी है जिसकी रचना अत्यन्त प्रौड़ है। ग्रन्थ पद्यमय है । यह मेरे द्वारा सम्पादित और अनूदित होकर अहिंसा मन्दिर दिल्ली से प्रकाशित हो चुका है। जोवन्धरचम्पू यशस्तिलकचम्पू के पश्चात् महाकवि हरिचन्द्र का जीवन्धरचम्पू मिलता है । इसकी कथा वादीभसिंह की 'गद्मचिन्तामणि' अथवा 'क्षत्रचूडामणि' से ली गयी है। यद्यपि जीवन्धर स्वामी की कथा का मूल स्रोत गुणभद्र के उत्तर-पुराण में मिलता है तथापि चम्प में मूल कथा से नाम तथा कथानक सम्बन्धी भिन्नता है । इसमें प्रत्येक लम्भ की कथा-वस्तु तथा पात्रों के नाम आवि गद्यचिन्तामणि से मिलते-जुलते हैं । महाकवि के इस काव्य में भगवान महावीरस्वामी के समकालीन क्षत्रचूडामणि श्री जीवन्धरस्वामी की कथा गुम्फित की है। पूरी कथा अलौकिक घटनाओं से भरी है। जीवन्धरस्वामी का चरित्र-चित्रण' इतना उत्कृष्ट है कि उससे उनका क्षत्रचूडामणित्व अर्थात क्षत्रियों का शिरोमणिपना अनायास सिद्ध हो जाता है। इस काव्य की रचना में कवि ने विशेष कौशल दिखलाया है । अलेकार की पुट और कोमलकान्त-पदावली बरबस पाठक के मन को और आशष्ट संयो। सो वि को गिभर्गसद्ध प्रतिभा झलकती है, इसीलिए प्रकरणानुकूल अर्थ और अर्थानुकूल शब्दों के चयन में उसे अल्प भी प्रयत्न नहीं करना पड़ा है। कितने ही गद्य तो इतने कौतुकावह है कि उन्हें पढ़कर कवि की प्रतिमा का अलौकिक चमकार दृष्टिगोचर होने लगता है। नगरीवर्णन, राजवर्णन, राज्ञीवर्णन, चन्द्रोदय, सूर्योदय, वनक्रीड़ा, जलक्रीड़ा, युद्ध आदि काब्य के समस्त वर्णनीय विषयों को कवि ने यथास्थान इतना सजाकर रखा है कि देखते ही बनता है। गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि के समान इसमें भी ग्यारह लम्भ है । पुरुदेवचम्पू इसके पश्चात् चम्नू काव्यों में महाकवि अर्हहास के पुरुदेवचम्पू वा स्थान या नाम आता है । इसमें श्लेष, परिसंस्था तथा उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों को विच्छित्ति अपना प्रमुख स्थान रखती है। इसके दस स्तवकों में भगवान् ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत और बाहुबली की कथा चचित है। आदि के तीन स्तवकों में भगवान् ऋपभदेव के पूर्वभवों का वर्णन है और उसके आगे के स्तवकों में उनकी पंचकल्याणकरूप कथा का १. भारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी से प्रकाशित ( सम्पादन और संस्कृत हिन्दी टोका पन्नाला साहित्याचार्य)। महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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