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________________ दर्शन करा रहा है । विद्वानों के वैदुष्य की परख कविता से न होकर गद्य से ही होती देखी जाती है । अब भी संस्कृत साहित्य में यह उक्ति प्रचलित है- 'गद्यं कवीनां निकर्ष वदन्ति' अर्थात् गद्य-काव्य ही कवियों की कसौटी है । कवि के दुष्य की होनता, कविता-कामिनी के अंचल में सहज ही छिप सकती है पर गद्य में नहीं । कविता में छन्द की परतन्त्रता कवि की रक्षा के लिए उन्नत प्राचीर का काम देती है पर गद्य लेखक की रक्षा के लिए कोई प्राचीर नहीं रहती । गद्य साहित्य की विरलता में उसकी कठिनाई भी एक कारण हो सकती है। क्योंकि गद्य लिखने की क्षमता रखनेवाले विद्वान् अल्प ही होते आये है । यही कारण है कि संस्कृत-साहित्य में काव्य की शैली से गद्य लिखनेवाले लेखक अंगुलियों पर गणनीय हैं। यथा- वासवदत्ता के लेखक सुबन्धु, कादम्बरी और हर्षचरित के लेखक माण, दशकुमारचरित के लेखक दण्डी, गद्य चिन्तामणि के लेखक वायमसिंह, तिलक-मंजरी के लेखक धनपाल और शिवराजविजय के लेखक अम्बिकादत्त व्यास | चम्पू साहित्य के रूप में पद्यों के साथ गद्य लिखनेवाले लेखक इनको अपेक्षा कुछ अधिक हैं । गद्य की धारा सदा एक रूप में प्रवाहित नहीं होती, किन्तु रख के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है । रौद्र अथवा वीर रस के प्रकरण में जहाँ हम गद्य की समाप्तबहुल गौड़ी - रीति प्रधान रचना देखते हैं वहीं शृंगार तथा शान्त आदि रसों के सन्दर्भ में उसे अल्प- समास से युक्त अथवा समास-रहित वैदर्भी रीतिप्रधान देखते हैं। संस्कृत गद्य साहित्य में बाण की कादम्बरी का जो बहुमान है यह उसकी रसानुरूप शैली के ही कारण है । नाटकों में गद्य का दीर्घ समालरहित रूप हो शोभा देता है । संस्कृतनाटकों में भवभूति के मालती - माधय और हस्तिमल्ल के विक्रान्त कौरव का गद्य नाट्यसाहित्य के अनुरूप नहीं प्रतीत होसा। जिस गद्य को सुनकर दर्शक को झटिति भावावबोध न हो वह नाटकोचित नहीं है । भास और कालिदास की भाषा नाटकों के सर्वथा अनुरूप है । चम्पू-काव्य 'गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते' इस लक्षण के अनुसार चम्पू-काव्य उस मिश्र काव्य का नाम है जिसमें गद्य और पद्य का मिश्रण रहता है। इस मिश्रण का समुचित विभाग यही प्रतीत होता है कि भावात्मक विषयों का वर्णन पद्य के द्वारा हो और वर्णनात्मक विषयों का वर्णन गद्य के द्वारा ही, परन्तु उपलब्ध चम्पू - काव्यों में इस विभाग की उपलब्धि कम होती है । चम्पू-काव्य, गद्य काव्य का ही प्रकारान्तर से संवर्धन प्रतीत होता है इसीलिए पश्चात् आता है। यही कारण है कि दशम अभी तक नहीं हुई है । यद्यपि गद्य और पद्य का मिश्रण वैदिक संहिताओं, विशेषकर कृष्ण यजुर्वेदीय संहिताओं में भी उपलब्ध इसका उदय काल गद्यकाव्य के सुवर्णयुग के शताब्दी से पूर्वरचित चम्पू की उपलब्धि महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुसीलन 8
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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