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________________ स्तम्भ १ : आधारभूमि काव्यधारा पद्यकाव्य अब्यकाव्य के पद्य, गद्य और चम्पू इन तीन भेदों में पद्यकाव्य अत्यन्त विस्तुत है। भगवती शारदा ने वैदिक दुरूह गीतों की कारा से मुक्ति पाकर ज्योंही कवियों की कमनीय कल्पनाओं से ओतप्रोत काव्यकाल में पदार्पण किया त्योंही भास, कालिदास, अश्वघोष, भारवि, भवभूति, माघ, हरिचन्द्र, वीरनन्दी और श्रीहर्ष आदि कवियों ने विविध ग्रन्थ रूप पारिजात-पुष्पों से उनकी परण-वन्दना की। यही कारण है कि संस्कृत का पद्य-साहित्य-रूप उपवन आज भी विविध प्रबन्ध-पादपों से हरा-भरा है। पद्य शब्द को निष्पत्ति 'पद गो' धातु से हुई है। उसकी निरुक्ति है 'पत्तुं योग्य पद्यम्' अर्थात् जो गतिशील हो वह पद्य कहलाता है। वस्तुतः पद्य कितना गतिशील है, यह कहने की आवश्यकता नहीं। संस्कृत साहित्य ही नहीं, विश्व का समस्त साहित्य आज पद्यरचना से प्रभावित है। गद्यकाव्य 'गदितुं योग्यं गद्यम्' इस निरुक्ति से गहा शब्द की निष्पत्ति 'गद व्यक्तायां वाचि' धातु से होती है और उसका अर्थ होता है स्पष्ट कहने के योग्य । तात्पर्य यह है कि मनुष्य, जिसके द्वारा अपना अभिप्राय स्पष्ट कह सके वह गद्य है। पश्य की मात्राओं और गणों की परतन्त्रता में मनुष्म ऐसा जकड़ जाता है कि खुलकर पूरी बात कहने को उसमें सामर्थ्य ही नहीं रहती। कर्ता, कर्म, क्रिया और उसके विशेषणों का जो स्वाभाविक क्रम होता है वह भी पद्य में समाप्त हो जाता है। कर्ता कहीं पड़ा है, कर्म कहीं है, क्रिया कहीं है और उनके वियोषण कहीं है। बिना अन्त्रय की योजना किये पद्य का अयं लगाना भी कठिन हो जाता है परन्तु गद्य में यह असंगति नहीं रहती। हृदय यह स्वीकृत करना चाहता है कि भाषा में गद्य प्राचीन है और पद्य अर्वाचीन । शिशु के मुख में जब वाणी का सर्वप्रथम स्रोत फूटता है तब वह गध-रूप में ही फूटता है । पद्म' का प्रवाह प्रबुद्ध होने पर जिस किसी के मुख से ही फूट पाता है सबके नहीं। पद्य-साहित्य की इतनी प्रचुरता और लोकप्रियता के होने पर भी गद्य-साहित्य ही स्थिर ज्योति-स्तम्भ के समान कल्पनाओं के अन्तरिक्ष में उड़नेवाले कवियों को मार्ग आधारभूमि
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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