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कोई एक युवा पास जाकर अपनी स्त्री के स्तमरूप कुड्मल के अग्रभाग को पानी से सींच रहा था जिससे ऐसा जान पड़ता था मानो वह उसके हृदयस्थल में उत्पन्न हुए रागरूपी कल्पवृक्ष की वृद्धि ही चाहता था ।
कोई एक स्त्री अपने पति को धोखा देकर सखी के साथ मुहूर्त-भर के लिए पानी में डूबा साथ गयी परन्तु उसके शरीर की सुगन्धि के लोभ से मंडराते हुए भ्रमरों से उसका पता चल गया और पति ने उसका आलिंगन किया ।
जिसके स्तन कमल की बोंडियों के समान थे, कोमल भुजाएँ मृणाल के समान थीं और मुख फूले हुए कमल के समान था ऐसी सुन्दर रूप को धारण करनेवाली कोई स्त्री जब कमलिनियों के बीच गहुँची तब अलग से पहचानने में नहीं आयी ।
नदी का पानी स्त्रियों के सचन केशबन्धन से गिरे हुए फूलों के द्वारा तारकित — ताराबों से मुक्त जैसा हो रहा था और उसके बीच में तरुणजनरूपी चकोरों के द्वारा देखा गया किसी स्त्री का मुख चन्द्रमा हो रहा था - चन्द्रमा के समान जान पड़ता था । इस प्रकार पुष्प और लोकेश से जीवन्धरचम्पू का वसन्त-वैभव काव्यकला का एक उत्तम आदर्श है ।
आमोद-निर्देशन (मनोरंजन)
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