SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि की वाणी में देखिए कथमपि वदिनीमगाहमानायचकितदृशः प्रतिमाच्छलेन तन्ध्यः । इह पयसि भुजावलम्बनायं समभिसृता इव बारिदेवताभिः ॥१९॥ कितनी ही चंचल-लोचना स्त्रियां नदी के पास जाकर भी उसमें प्रवेश नहीं कर रही थी परन्तु पानी में शके प्रतिकिार पर दे में लिपटे ऐसी नान पड़ती थों मानो उनको भुनाएँ पकड़ने के लिए जलदेवियाँ ही उनके सम्मुख भायी हों। जलप्रवेश से डरनेवाली स्त्री का चित्रण माघ ने भी बड़ा कौतुकपूर्ण किया है देखिए आसीना तटभुवि सस्मितेन भी रम्भोरूरवतरितुं सरस्यनिच्छुः । घुम्वाना करयुगमीक्षितुं विलासाशीतालुः सलिलगतन सिच्यते स्म ॥१९॥ -शिशुपालवध, सर्ग ८ कोई एक स्त्री ठण्ड का बहाना लेकर नदी तट पर बैठी हुई सरोवर में प्रवेश करने के लिए कतरा रही है। उसका पति पानी में प्रवेश कर चुका है। पति के कहने पर भी यह पानी में प्रवेश नहीं कर रही है मात्र दोनों हाथ हिलाकर मना कर रही है तब पति उसकी विलास-चेष्टाएँ देखने के लिए मुसकराता हुआ उसपर पानी उछाल रहा है। - शिशुपालवध के अष्टम सर्ग में ७१ श्लोकों के द्वारा माघ ने और धर्मशर्माम्युदय के त्रयोदश सर्ग में उसने ही श्लोकों द्वारा हरिचन्द्र ने जलक्रीड़ा का बड़ा प्राञ्जल वर्णन किया है। दोनों ही कवि, आख्यानात्मक अंश से उतने अनुरक्त नहीं जान पड़ते जितने कि वर्णनात्मक अंश से । वनक्रीड़ा, जलक्रीड़ा, घान्द्रोदय, प्रभात, सूर्योदय आदि के वर्णन में उन्होंने पूरे-पूरे सर्ग व्याप्त किये हैं। ': स्त्रियों के जलप्रवेश करते ही कमलवन में बैठा हुआ हंस, अपनी चोंच में मृणालाण्ड को दबाये हुए भय से उड़ गया इसका सजीव वर्णन देखिए प्रारति जललीलया जस्मिन्बिसवदनो दिचमुत्पपात हसः । .. नवपरिभवलेखभृतलिन्या प्रहित इवांशुमते प्रियाय दूतः ॥२३॥ -धर्मशर्मा., सगं १३ जब लोग जलक्रीड़ा करते हुए इधर-उधर फैल गये सब हंस अपने मुंह में मृणाल का टुकड़ा दाबे हुए आकाश में उड़ गया जो ऐसा जान पड़ता था मानो कमलिनी ने नूतन पराभव के लेख से युक्त दूत ही अपने पति-सूर्य के पास भेजा हो । , कोई एक पुरुष अपनी प्रियतमा के वक्षःस्थल पर बार-बार पानी उछाल रहा था। क्यों उछाल रहा था? इसका उत्तर महाकवि हरिचन्द्र की वाणी में देखिए११२ महाकधि हरिश्चन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy