SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किसो वृक्ष पर मयूर बैठा था, ज्यों ही उसने अक्ष के नीचे अपने पिच्छभार को जीतनेवाली तथा गुंगी हुई मालाओं से चित्र-विचित्र किसी मुवती की चोटी देखी त्यों ही बह शीघ्र भाग गया सो ठीक ही है क्योंकि ईर्ष्यालु प्राणी अधिक गुणवानों के साथ एकत्र नहीं रह सकते । स्त्री के बागी-माधुर्य को प्रकट करने के लिए कोई पति कह रहा है भत्र क्षणं चण्डि वियोगिनीजने झ्यालुरुल्मुद्र य सुन्दरी गिरम् । अमी हताशाः प्रथयन्तु मूकतां कृतान्तदूता इव लज्जिताः पिकाः ॥३८॥ -धर्मशर्मा., सर्ग १२ हे पण्डि ! क्षण-भर के लिए वियोगिनी स्त्रियों पर दयालु हो जा और अपनी सुन्दर वाणी प्रकट कर दे जिससे यमराज के दूतों के समान ये दुष्ठ कोपल लज्जित हो चुप हो जायें। यहाँ 'तेरी वाणी कोमल की कूक से भी मधुर है' यह भाव कवि ने प्रकट क्रिया है। ___सृष्ट स्त्रियों तथा पुरुषों को अनुकूल करने के लिए सखियों को सान्त्वनापूर्ण उक्तियां भी ( १२-१९), (३५-३९) दर्शनीय है। समस्त सर्ग में शृंगार रस को मधुर धारा को प्रवाहित करते हा भी कवि ने शालीनता को सरक्षित रखा है जबकि भाष उसे सुरक्षित नहीं रख सके हैं। माघ के सप्तम सर्ग के ४४-५१ श्लोफ अघिक अशालीन जान पड़ते हैं। इसी प्रकार किरातार्जुनीय के अष्टम सर्ग का १९वां तथा इसी प्रकार के कुछ अन्य श्लोक भी शालीनता को सुरक्षित नहीं रख सके है । जलक्रीड़ा ___ विन्ध्याचल के फलपुष्पविशोभित बन में पुष्पापचय करती हुई स्त्रियां जब प्रान्त हो गयीं तथा उनके अंग स्वेद-बिन्दुओं से व्याप्त हो गये सब जलक्रीड़ा के लिए नर्मदा के तट पर गयीं। थकी-मादी स्त्रियों का वर्णन देखिए द्विगुणितमिष यात्रया बनानां स्तनजघनोद्वहनश्रमं वहन्त्यः । जलविहरणवाञ्छया सफान्ता ययुरण मेकलकाम्यका तरुण्यः ॥१11 धर्मः, सर्ग १३ तदनन्तर वनविहार से जो मानो दुना हो गया था ऐसा स्तन तथा अपन धारण करने का खेद वहन करनेवाली तरुण स्त्रियां जलक्रीड़ा की इच्छा से अपने अपने पतियों के साथ नर्मदा की ओर चलीं। कितनी ही स्त्रिया नवी तट पर पहुंचकर भी भम के कारण पानी में प्रवेश नहीं कर रही हैं परन्तु उनके प्रतिबिम्ब पानी में प्रतिनिम्बित हो रहे है इसका वर्णन आमोद-निदर्शन (मनोरंजन) १६१
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy