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________________ स्तनमण्डल के भार के कारण मध्यभाग से जल्दी ही टूट जायेगी। अब इसी मेखला का वर्णन महाकवि माघ को वाणी में देखिएअतिशयपरिणाहवान्वितेने बहुतरमपितरत्नकिङ्किणीकः । अलघुनि अपनस्थले परस्था ध्वनिमधिक कलमेखलाकलापः ॥५॥ -शिशुपाल., सर्ग ७ किसी अन्य स्त्री के स्थूल नितम्बमण्डल पर अनेक मणिमय किकिणियों से युक्त अतिशय विशाल मनोहर मेखलाओं का समूह अधिक शब्द कर रहा था। यहाँ शब्द क्यों कर रहा था ? इसमें कवि ने कोई कल्पनापूर्ण हेतु नहीं दिया । कोई स्त्री लता के अग्रभाग में लगे हुए फूल को तोड़ने के लिए अपनी भुजा ऊपर उठाये हुए है इसका वर्णन हरिचन्द्र की वाणी में देखिए काचिद्वराङ्गी कमितुः पुरस्तादुदस्तबाहोः कुसुमोद्यतस्य । मूलं नखाताञ्चितमंशुफेन तिरोदधे मङ्घ करान्तरेण ।।८।। -जीवनमरचम्प, लम्भ ४ कोई एक स्त्री अपने पति के सामने फूल तोड़ने के लिए भुना ऊपर की ओर उठाये हुए थी परन्तु उस भूजा के मूल में पति के द्वारा दिया हुआ नखक्षत का चिह्न था जिसे वह दूसरे हाथ से वस्त्र के द्वारा बड़ी सुन्दरता के साथ छिपा रही थी। , यही वर्णन माघ के शब्दों में देखिएप्रियमभि कुसुमोद्यतस्य बाहोर्नवनखमण्डनचारु मूलमन्या । मुहुरितरकराहितेन पोनस्तनतटरोधि तिरोदशकेन ॥३२॥ -शिशुपाल., सर्ग ७ यद्यपि दोनों श्लोकों का भाव एक-सा है तथापि मक्षु की अपेक्षा माघ का 'मुहुः शब्द अधिक चमत्कार उत्पन्न करनेवाला है। पतियों द्वारा स्त्रियों के प्रति जो प्रणयोक्तियाँ फहो गयी है उसका कुछ नमूना देखिए । स्त्री के केशपाश का वर्णन करता हुआ पति उससे कहता है शिखण्डिनां ताण्डवमत्र बीक्षितुं तवास्ति चेच्चेतसि तन्ति कौतुकम् । समाल्यमुद्दाम नितम्बचुम्बिनं सुकेशि तत्संवृणु केशसञ्चयम् ॥३४॥ -धर्मशर्मा., सर्ग १२ हे तन्धि | यदि तेरे चित्त में यहां मयूरों का तापडव नृत्य देखने का कौतुक है तो हे सुकेशि ! स्थूल नितम्बों का चुम्बन करनेवाले, मालाओं सहित इस केशसमूह को टंक ले। यही भाव माष ने शिशुपालवध के पंचम सर्ग में प्रकट किया हैदृष्ट्येव निर्जितकलापभरामघस्ताद् ध्याकीर्णमास्यकवरी कबरी तरुण्याः । प्रादुरवत्सपवि चन्द्रकवान्भुमाग्रात्संघर्षणा सह गुणाभ्यषिकर्दुरासम् ।।१९॥ महाकवि हरिचन : एक अनुशीलन १६०
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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