SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उस समय शास्त्ररूपी समुद्र के पारदर्शी राजा महासेन से करती हुई सरस्वती ने विशेष पाठ के लिए ही मानो पुस्तक अपने उसे अब भी नहीं छोड़ती । पराभव की आशंका हाथ में ली थी पर श्रुत, शील, बल और मौदार्य का एकत्र समावेश देखिए - श्रुतं च शीलं च बलं च तत् त्रयं स सर्वदौदार्यगुणेन संवधत् । चतुष्कमापूरयति स्म दिग्जयप्रवृत्तकीर्तेः प्रथमं सुमङ्गलम् ॥२- १८ || वह राजा श्रुत, शील और बल इन तीनों को सदा उदारतारूपी गुण से युक्त रखता था मानो दिग्विजय हुई कोशि के लिए मंच ही पूरा कर था। ऐश्वर्य का वर्णन देखिए अन्ये मियोपासपयोभिगोत्राः क्षोणीभुजो जग्मुरगम्यभावम् । लक्ष्मीस्ततो वारिधिराजकन्या तमेकमेवात्मपति चकार ॥४-२८॥ जब अन्य राजा भय से भागकर समुद्र और पर्वतों में जा छिपे ( पक्ष में समुद्र का गोत्र स्वीकृत कर चुके ) अतः अगम्य भाव को प्राप्त हो गये ( कहीं भाई के साथ भी विवाह होता है ? ) तब समुद्रराज की पुत्री लक्ष्मी ने उसी एक दशरथ राजा को अपना पति बनाया था। तात्पर्य यह है कि वह लक्ष्मी का अद्वितीय पति होने से अत्यधिक ऐश्वर्यवान् था 1 देवसेना धर्मजिनेन्द्र का जन्माभिषेक करने के लिए सुमेरु पर्वत पर जानेवाली विक्रियानिर्मित देवसेना में कविवर हरिचन्द्र ने धर्मशर्माभ्युदय के सप्तम सर्ग में गजों और अश्वों का जो स्वभावोवित रूप वर्णन किया है यह शिशुपालवध के गजादव वर्णन से कहीं अधिक आकर्षक बन पड़ा है । पाण्डुक वन में स्थित ऐरावत हाथी का वर्णन देखिएहरेद्विपो हारिहिरण्यकक्षः क्षरन्मदक्षालितलम्भृङ्गः । भी डिविहारसारः शरत्तडित्वानिव तत्र वर्षन् ||३१|| जिसके गले में सुवर्ण की सुन्दर मालाएं पड़ी हैं और जिसके भरते हुए मद से सुमेरु पर्वत का शिखर धुल रहा है ऐसा ऐरावत हाथी उस पर्वत पर इस प्रकार सुशोभित हो रहा था मानो बिजली के संचार से श्रेष्ठ बरसता हुआ शरद् ऋतु का बादल हो हो । हाथियों के मदजल का वर्णन देखिए हिरण्यभूभृद्विर देस्तवानीं मदाम्बुधारास्तपितोत्तमाङ्गः । स दृष्टपूर्वोऽपि सुरासुराणामजीजनत्कज्जल-लशङ्काम् ॥४३॥ हाथियों ने अपने मदजल की धारा से जिसका शिखर तर कर दिया था ऐसा वह सुवर्णगिरि - सुमेरु यद्यपि पहले का देखा हुआ था तथापि उस समय सुर और असुरों को कज्जल गिरि की शंका उत्पन्न कर रहा था । वर्णन १३५
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy