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________________ तत्सकोश्यं न किंचिद् गणपति विदितं तेऽस्तु तेनास्मि दत्ता मृत्येभ्यः श्रीनियोगाद् गदितुमिति गतेवाम्बुर्षि मस्य कीर्तिः ।। निम्नांकित श्लोक में राजा के सुयश के साथ शत्रु के अपयश का वर्णन भी देखिए कितना मनोहारी हुआ है जगत्त्रयोत्तसितभासि तद्यशः समग्रपीयूषमयूखमण्डले ।। विजम्भमाणं रिपुराजदुर्यशो बभार तुच्छेसरलाञ्छनच्छविम् ।।२२।।-सर्ग २ त्रिभुवन को असंकृत करनेवाले उस राजा के पशरूपी पूर्णचन्द्रमा के बीच शत्रुओं का बढ़ता हुआ अपयश विशाल कलंक की कास्ति को धारण कर रहा था। प्रताप का वर्णन देखिए वमन्नमन्दं रिपुवर्मयोगतः स्फुलिङ्गजालं तदसिस्तदा बभौ । वनिवासुग्जालसिक्तसंगरक्षितौ प्रतापद्रुमबीजसंततिम् ।।२-२३॥ शत्रुओं के कवचों का संसर्ग पाकर बहुत भारी चिनगारियों के समूह को उगलता हुआ उस राजा का कृपाण उस समय ऐसा सुशोभित हो रहा था मानो खुनरूपी जल से सिंची ई युद्ध की भूमि में प्रतापरूपी वृक्ष के बीजों का समूह ही यो रहा हो। दूरात्समुत्तसितशासनोहसिन्दूरमुदारुणभालमूलाः । यस्य प्रतापन नपाः कवाग्रष्टा इवाजमापासनाथ ॥३९॥-सर्ग ४ जिनके ललाट का मूलभाग सिन्दूर की मुद्रा से लाल-लाल हो रहा है ऐसे राजा लोग आज्ञा शिरोधार्य कर दूर-दूर से इसकी उपासना के लिए इस प्रकार चले आते थे मानो इसका प्रताप उनके बाल पकड़ उन्हें खींच-खींचकर ही ले पा रहा हो। औदार्य गुण का वर्णन देखिए उदकवनो वनितास्वभावतो विभाज्य विधम्भमधारयनिव । ज्यशिश्रणद्वैरिकुलाबलाहतां स्वसंमतेम्यो बहिरेव स श्रियम् ॥२-२०।। यह लक्ष्मी स्त्री जैसा स्वभाव रखती है अतः फलकाल में कुटिल होगी-ऐसा विचारकर विश्वास न करता हुआ वह राजा शत्रुओं के कुल से हठपूर्वक लायी हुई लक्ष्मी को बाहर ही अपने मित्रों को दे देता था। प्रयच्छता तेन समीहितार्थानून निरस्तार्थिकुटुम्बकम्यः । व्यर्थीभवत्यागमनोरथस्य चिन्तामणेरेव बभूव चिन्ता ॥४-३८11 पतश्च यह राजा सबके लिए इच्छानुसार पदार्थ देता था अतः याचकों के समूह से खदेड़ी हई चिन्ता केवल उस चिन्तामणि के पास पहुंची थी जिसके दान के मनोरथ याचक न मिलने से व्यर्थ हो रहे थे। राजा की श्रुतपारदर्शिता का वर्णन देखिएततः श्रुताम्भोनिधिपार दृश्वनो विशङ्कमानेव पराभयं तदा। विशेषपाठाय विधृत्य पुस्तकं करात मुन्नत्यधुनापि भारती ॥२-१६॥ महाकवि हरिचन्द्र : एक अमुशीलन १४
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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