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________________ हे सुन्दर दांतोंवाली प्रिये ! सुवर्ण के समान कान्तिवाले तुम्हारे शरीर पर यह चम्मक की माला वर्णोत्कर्ष को प्राप्त नहीं हो रही है, इस प्रकार कहकर किसी पुरुष ने प्रिया के रका सई ... बर पुलों की मादी । वपुषि फनकगोरे चम्पकानां लगेषा . वितरति परभाग नेति कश्चित्प्रियायाः । उरसि वकुलमालामाबधन्धाम्बुणाश्याः स्तनकलशसमीपे चालयन्पाणिपद्मम् ।।१०।। -जीवन्धर चम्प, लम्भ ४ यत: तुम्हारा शरीर सुवर्ण के समान पीला है अतः उसपर यह चम्पे की माला खिलती नहीं है ऐसा कहकर स्तनकलश के सभोप हाथ चलाते हुए किसी पुरुष ने अपनी स्त्री के अक्षःस्थल पर मौलवी की माला बाँध दी । ___ जलक्रीड़ा के बाद स्त्रियों द्वारा छोड़े जानेवाले गीले वस्त्रों का वर्णन चन्द्रप्रभचरित में देखिए कुवलयनयनाभिरस्यमानान्यनुपुलिनं सरसानि रागवन्ति । मुमुचुरिव शुचानुणः प्रवाहं सवणपदेन पुरातनांशुकानि ॥५८।। -पन्द्रप्रभ., सर्ग १ कुवलय के समान नेत्रोंवाली स्त्रियों ने सरसी के तट पर जो गीले-रंगीले वस्त्र छोड़े थे थे पानी झरने के बहाने मानो शोकवश आंसू ही छोड़ रहे थे। माघ ने धारण किये जानेवाले नवीन सफ़ेद वस्त्र और छोड़े जानेवाले गीले वस्त्रों का एक साथ वर्णन करते हुए कहा है वासांसि न्यवसत यानि योषितस्ता: शुभ्राभ्रद्युतिभिरहासि तर्मुदेव । अत्याक्षुः स्नपनगलालानि यानि स्थूलाश्रुनुतिभिररोदि तैः शुचेव ॥६६॥-शिशुपाल., सर्ग ८ उन स्त्रियों ने जो वस्त्र पहने थे उन्होंने हर्ष से ही मानो सफेद मेघों की कान्ति का हास्य किया था और जिन जल भरानेवाले वस्त्रों को छोड़ा था वे शोक से ही मानो रो रहे थे। चन्द्रप्रभ और धर्मशर्माभ्युदय के वर्णनीय विषयों में सादृश्य पाया जाता है। चन्द्रप्रभ में मुनिदर्शन का प्रकरण उपस्थित है तो धर्मशर्मास्युदय में भी वह प्रकरण उपस्थित किया गया है। इस सन्दर्भ में दोनों काव्यों में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग किया गया है। इतना अवश्य है कि वर्मशर्माभ्युदय के कषि ने काव्यप्रतिभा का चमत्कार विशेष दिखाया है। चन्द्रप्रभ का दर्शनशास्त्रविषमक वर्णन विस्तृत हो १. द्वितीय सर्ग, ५१-१०० । महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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