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________________ - कार्यस्त्वया स्मरनिवास-नितम्बम्बी चीनांशुकेन पिहितो मजकेशपाशः ॥ - ८-५४ हे सुमुखि 1 यदि वहाँ मयूर लज्जित हो मेरे नेत्रों को हरण करनेवाला नृत्य छोड़कर जाने को उद्यत हो तो तुम्हें काम के निवासभूत नितम्ब का चुम्बन करनेवाला अपना केश पास चीनांशुक से ढक लेना चाहिए ( क्योंकि तुम्हारे केशपाश से ही वह लज्जित होकर भागना चाहता होगा ) । माघ ने भी स्त्री के माल्यग्रथित केशपाश से लज्जित होकर भागनेवाले मयूर का ऐसा ही वर्णन किया है दृष्ट्वेव निजितकलापभरामधस्ताद् व्याकीर्ण मायकai कबरीं तरुण्याः । प्राद्रवरसपदि चन्द्रकान्तु मा प्रात् संघर्षिणा सह गुणाभ्यधिकैर्दुरासम् ॥ १९ ॥ किसी वृक्ष पर मयूर बैठा था। ज्यों ही उसने वृक्ष के नीचे अपने पिच्छभार को जीतनेवाली, गुम्फित-मालाओं से चित्र-विचित्र किसी युवती को चोटी देखी त्यों ही वह शीघ्र या वासोट ही है क्योंकि गुणवालों के साथ श्रादान-प्रदान एकत्र नहीं रह सकते । चन्द्रप्रभ में केशपाश को चित्रित करनेवाला कोई विशेषण नहीं दिया है जबकि शिशुपालवध में 'व्याकीर्णमाल्यकवरां' विशेषण देकर उसे मयूरपिच्छ के अत्यन्त सदृश बना दिया है। इसी सन्दर्भ को हरिचन्द्र ने एक दूसरे ढंग से निम्न प्रकार प्रस्तुत किया हैशिखण्डिनां ताण्डवमंत्र वीक्षितुं तवास्ति चेच्चेतसि तन्वि कौतुकम् । समास्यमुद्दामनितम्बचुम्बनं सुकेशि तत्संवृणु केशसञ्चयम् ॥१३४॥ - धर्मशर्माभ्युदय सर्ग १२ 1 हे तन्वि 1 यदि तेरे चिस में यहाँ मयूरों का ताण्डव नृत्य देखने का कौतुक है तो हे सुकेशि ! स्थूल- नितम्बों का चुम्बन करनेवाले, मालाओं सहित इस केश-समूह को क ले | एक पुरुष अपनी स्त्री के वक्षःस्थल पर आश्रय लेता है ठीक उन्हीं वनों का चम्प्रभचरित में पुष्पावचय के समय वकुलमाला पहनाता हुआ जिन चाटू बचनों का आश्रय जीवन्धरचम्पू में भी लिया गया है । देखिए - - वपुषि कनकभासि चम्पकानां सुदति न ते परभागमेति माला । स्तनतटमिति संस्पृशन् प्रियामा हृदि रमणो बकुलस बबन्ध ॥१-२४ ॥ -चन्द्रप्रभ ་
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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