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________________ यदुवंशियों ने स्त्रियों के साथ अन-विहार किया था इसमें माष ने जो युक्ति दी है ठीक वही युक्ति हरिचन्द्र ने भी दी है। दोनों की युक्तियां देखिए दधति सुमनसो वनानि यीवतियुता यदवः प्रयातुमीषुः । मनसिश्चयमहास्त्रमम्यदामी न कुसुमपञ्चकमप्यलं विसोम् ||२|| - शिशुपाल वध, सर्ग ७ यदुवंशियों ने अनेक फूलों को धारण करनेवाले वनों में स्त्रियों के सहित हो जाने की इच्छा को यो क्योंकि वे अन्यथा — स्त्रियों के बिना काम के अमोघ शस्त्रस्वरूप पांच फूलों को भी सहन करने में समर्थ नहीं थे । बिकासिपुष्पगुणि कानने जनाः प्रयातुमीषुः सह कामिनीगणः । स्मरस्य पश्चापि न पुष्पमागंणा भवन्ति सह्याः किमसंख्यतां गताः || म्युदय १२-३ खिले हुए पुष्पवृक्षों से युक्त वन में मनुष्यों ने स्त्री-समूह के साथ ही जाना अच्छा समझा। क्योंकि जब काम के पाँच ही बाण सहा नहीं होते तब असंख्य बाण सा कैसे हो सकेंगे ? I जलक्रीड़ा आदि में मी मात्र का प्रभाव परिलक्षित होता है । जैसा कि आगे दिये जानेवाले तत्तत्प्रकरणों के उबरणों से सिद्ध होगा । चन्द्रप्रभवरित और धर्मशर्माभ्युवम ५ चौरनन्दो का 'चन्द्रप्रभचरित' एक उच्चकोटि का काव्य है । उसमें अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का जीवनवृत्त अंकित है। पूर्वभव वर्णन के प्रसंग में चन्द्रप्रभचरित के अष्टम नवम और दशम सर्ग कवित्व की दृष्टि से निरुपम हैं। इन सर्गों में कवि ने ऋतुचक्र, वनक्रीड़ा, जल-क्रीड़ा, प्रदोष, चन्द्रोदय, सम्भोग श्रृंगार और प्रभात-वर्णन में अपनी काव्य प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया है। ऐसा लगता है कि उपर्युक्त वस्तुओं के वर्णन में माघ और हरिश्चन्द्र दोनों ही ने वीरनन्दी से प्रेरणा प्राप्त की है। वीरनन्दी नेव ऋतुओं का वर्णन न कर मात्र वसन्त ऋतु का वर्णन किया है परन्तु माघ और हरिचन्द्र ने दिव्य नायकों की प्रभुता प्रकट करने के लिए षड् ऋतुकों का वर्णन किया है । दूतप्रेषण तीनों काव्यों में एक सदृश है। इसकी वनक्रीड़ा भी संक्षिप्त है। स्त्रियों के प्रति चाटुवचनों का जो उपक्रम वीरनन्वी ने किया है उसे भाघ और हरिचन्द्र ने पल्लवित किया है । चन्द्रप्रभ में एक नायक अपनी स्त्री से कह रहा हैहोतो विहाय मम लोचनहारि नृत्तं गन्तुं शिखी सुमुखि तत्र यदि व्यवस्येत् । १. अमृतलालजी जैनवर्शनाचा वाराणसी के द्वारा सम्पादित और हिन्दी में अनूदित होकर जीनराज सभ्य माला खोलापुर से प्रकाशित | महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन ९८
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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