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________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व जबकि वीलगगता उसके अन्तिम छोर तक पहुंचने में सहायक होती है ! इसलिए कवि ने "पुण्यासव कथाकोष” की रचना करके पाठकों को अध्ययन का एक नवीन भागं बतलाया | ये सब ऐसी कथाएं है जिनमें जीवन निर्माण का मार्ग मिलता है ! सरसता एवं धारा प्रवाहिकता में ये कथाएं किसी से कम नहीं ! भाव, भाषा एवं शैली सभी दृष्टियों से उत्तम 1 आगरा की गलियों में अध्यात्म संलियों में तथा मन्दिर एवं स्वाध्याय शालाओं में इन कथाओंों को पढ़ा जाने लगा और इस एक ही कृति में दौलतराम लोकप्रियता के शिखर पर जा बैठे। ८४ उदयपुर में जब वे पहुँचे तो वहाँ भी राजाशाही थी । कामिनी एवं सुरा का दौर दौरा था ! और कवि को इन राजदरबारों में भी उपस्थित रहना पड़ता था ! जयपुर महाराजकुमार के संरक्षक जो ठहरे ! लेकिन यहाँ भी कवि ने अपने आपको कमल के समान निलिप्त रखा ? उदयपुर जाने के पश्चात् उनका साहित्यिक जीवन निखर गया। आगरा में उन्हें वहाँ की अध्यात्मक शैली में रहने का अवसर मिला और भूधरदास जैसे महाकवि से साहित्यिक विचार विमर्श करने का सौभाग्य मिला। आगरा से पुनः जयपुर याने के पश्चात् भट्टारकों एवं तत्कालीन विद्वानों के विचारों को जानने एवं समझने का समय प्रश्प्त हुआ। और जब उदयपुर पहुँचे तो उन्हें एकान्त में अपने विचारों का मन्थन करने का खूब समय मिला । यहाँ आगरा एवं जयपुर जैसा न तो साहित्यिक वातावरण था श्रीर न सामाजिक संगठन हो । यहाँ उन्होंने अपने योग्य वस्तावरणा का स्वयं को निर्माण करना पड़ा । एवं शास्त्र प्रवचन के माध्यम से अपने विचारों को प्रसारित करने का सुन्दर अवसर भी मिला। इसलिये उदयपुर जाने के पश्चात् उन्होंने रामाज को सर्वप्रथम "क्रिय | कोश" दिया। इसके आधार पर हम कवि को विचारधारा का अच्छी तरह अध्ययन कर सकते हैं । कवि ने इसमें गृहस्थों के लिए श्रावश्यक त्रेपन क्रियाओं का जिस सुन्दरता एवं विशदता से दर्शन किया। हैं वह कवि के विचारों का द्योतक है। उसने सभी क्रियाओं को जीवन विकास के लिये श्रावश्यक माना है और उनके पालन करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला है । आरम्भ में उसने इन कार्यों का नामोल्लेख किया है जिनके सम्पादन से मानव जीवन सामान्यतया प्रशस्त बनता है तथा जिन्हें हम आवक मात्र के लक्षण कह सकते हैं । ऐसे शुभ कार्यों के नाम निम्न प्रकार हैं मोक्ष मारगी मुनिवरा, जिनकी सेव करेय । सो श्रावक धनि धन्य है जिन मारग चित देय || ६० ||
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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