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________________ महाकवि दौलतराम कासनीयक्तित्दै एक भूमि सुखी होहु राजा प्रजा, सुखी होई चौसंग । पावहु शिवपुर सज्जना, सो पद सदा अलंध । इन्द्रजीत के कारने, टवाजु बालाबोध । भाष्यो दौलतराम ने, जाकर होय प्रबोध ।। १७ वसुनन्दि धावकाचार भाषा प्राचार्य वसुनन्दि का श्रावकाचार प्राकृत भाषा का सुन्दर एवं महत्वपूर्ण नथ है । इसमें प्राषकों के प्राचार धर्म का वर्णन किया गया है । महाकवि दौलतराम जब उदयपुर में थे, तभी उन्होंने अपनी शास्त्र सभा में इस श्रावकाचार पर प्रवचन किया था । अथ प्राकृत में होने के कारण कवि के द्वारा समझाने पर एक बार तो समझ में प्रागया; लेकिन पुन: उसका स्वाध्यान कैसे किया जाने यह प्रश्न सभी के समक्ष प्राया । अन्त में शास्त्र सभा के प्रमुख श्राताओं में सेठ वेलजी ने दौलतराम से निवेदन किया कि यदि इस ग्रंथ की रचा टीका हो जाये तो इसका स्वाध्याय करने में सभी को सुविधा होगी । वेलजी सेठ का अनुरोध सुनकर कवि इसकी टच्या टीका करने को सहमत हो गये और उन्होंने शोघ्र ही अपने कार्य को समाप्त कर दिया । अब तुम सुनहु भव्य इक न, जा विधि टवा भयो सुख दैन उदियापुर में कियो बखान, दौलतिराम आनन्द सुत जान । बाच्यो श्रावक यत विचार, बसुनन्दी गाथा अधिकार । बोले सेठ वेलजी नाम, सुनि नृप मंत्री दौलनिराम । टन्या होय जो गाथा तनो, पुन्य उपजै जिसको घनी । सुनि के दौलति वेल सु वैन, मन धरि गायो मारग जैन । नंदी बिरधी जिन मत सार, सुख पावो चउसंध अपार । दौलति वेल कहो निज बोध, होहु होहु सबको प्रतिबोध । टीका काफी विस्तृत हैं तथा भाषा एवं शस्त्री की दृष्टि से वह काफी अच्छी है। १८ सार चौबीसी ग्रह कवि को पनात्मक प्राध्यात्मिक कृति है जिसमें मानव जीवन का, जगत की गतिविधियों का, यात्म स्वभाव का एवं धामिक जीवन की श्रेष्टता का वर्णन किया गया है। इसी के साथ एक रूपात्मक कथा का भी वर्णन मिलता है । एक बार जीवात्मा ने भवसागर से पार उतरने का उपाय अपने
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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