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प्रस्तावना
'पना मकाया' नी त है तथा तलाहोर प्रचलित हिन्दी गद्य का सुन्दर रूप है। १५ तत्वार्थ सूत्र सध्या टीका
'तत्वार्थ सूत्र' जैन सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है । यह मूत्र रूप में है और प्राचार्य उमास्वामी विरचित है। इसका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शताब्दी माना जाता है । यह अन्य दोनों ही सम्प्रदायों में समान रूप से समावृत हैं । इस पर सस्कृत में किटनी ही टीकाए उपलब्ध है और उनमें पूज्यपाद की सवार्थसिद्धि (छठी शती) मकलकदेव का तत्वार्थराजवातिक (७७७-८३७) एवं विद्यानन्द की श्लोकवात्तिक टीकाए' (सं० २१०) सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हैं। हिन्दी मे भी कितनी ही टीकाए मिलती है।
कविवर दौलतराम ने इस पर टवा टोका लिख कर इसके स्वाध्याय के प्रचार में अपना योगदान दिया । कवि ने प्रध्यायों के अन्त में "इति तत्वार्थाविगमे मोक्षशास्त्र ए दशमी प्रध्याय अर्थ सहित पूरी हुवी और अन्त में इति उमास्वामि मुनि विरचितं तत्वार्थ सूत्र टन्न! सहित समाप्ति"-इस प्रकार अपनी टीका का परिचय दिया है। प्रथं सूत्रों पर दिया गया है तथा कहीं-२ तो पर्याप्त रूप से विस्तृत बन गया है । इसकी एक पाण्डुलिपि श्री दि० जैन मन्दिर पाण्डे सूमाकरण जी, जयपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। प्रथ की ब्बा टीका का एक उदाहरण देखिये
'अपना पर का उपकार के अधि अपना चित का देना सो दान है । तहां अपना पर का उपकार सो अनुग्रह कहिए सो अपना उपकार तो पुण्य का संचय होना हे और पर का उपकार सम्यग्दर्शन, ज्ञान-चारित्र की वृद्धि होना है. सो इन अर्थनितें स्व कहिला धन ताका अतिसर्ग कहिए त्याग सो दान है।" १६ स्वामी कातिकेयानप्रक्षा टल्या टीका'
यह प्राकृत भाषा का अपूर्व प्राथ है जिसमें बारह अनुप्रेक्षानों का विस्तृत वर्णन किया गया है। दौलतराम ने इसी की हिन्दी में टम्या टीका लिखकर इसके स्वाध्याय के प्रचार को प्रोत्साहन दिया । कवि ने इसकी प्रशस्ति में लिया है कि कार्तिकेयानुप्रेक्षा को टव्वा दोका इन्द्रजीत के बोध कसन को लिए संव १८२६ की ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन पूर्ण की यो
१. देखिये अनेकान्त,