________________
प्रस्तावना
पुराण के कितने हो प्रसंग है जिनमें महाकवि ने अपनी सारी लेखनी को उडेल कर रख दिया है। वर्शन शैली सरस एवं श्राकर्षक है । कवि ने प्रारम्भ में ग्रन्थ की उत्पत्ति तथा उसके पश्चात प्रनुक्रमणिका दी है जो हरिवंश पुराण का संक्षिप्त सार है। मात्र इस सार को ही पढ़कर कोई भी इस महान् कृति के विषय वर्णन से परिचित हो सकता है। अन्त में स्वयं महrefa ने भी " यह हरिवंश पुराण का विभाग संक्षेप कर रहा है ।" लिख कर अपने प्रतिपादित ग्रन्थ के विषय में जानकारी दे दी है। यहाँ एक गद्यांश प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे हरिवंश पुराण की गद्य शैली का अनुमान हो सकेगा—
भावार्थ::- माता ही स्वामिनी है पर निद्रा ही सभी है सो इस निद्रा सखी ने ऐसी जानी जो मोह कर मेरी स्वामिनी श्रानन्द रूप शुभ स्वप्न के दर्शन को प्राप्त भई मो मैं कृतार्थ भई सेवक का यही धर्म है जो स्वामी को आनन्द उपजावे इसी कर सेवक को कृतायंता है ||७६ || माता तो आप हो जातरूप है परन्तु दिक्कुमारी जगाने के अर्थ माता को ऐसे शुभ शब्द कहती भई सो वे शब्द केवल मंगल हो के अर्थ है। भर माता तो जाग्रतरूप है देवी कहा शब्द कहे सो सुनो। हे विधार्थं कहिये माता ? तू कैसी है जाना है पदार्थों का रहस्य जिसने सो तू विबुध्यास्व कहिये जाग हे विवर्धने ! कहिये वृद्धि रूपिणी थम तू सबको यानन्द बढा | पर हे देवी! विजय लक्ष्मी की स्वामिनी देवी पूर्ण है मनोरथ जिसके सो तू विजय के भाव को प्राप्त हो ||१७|| हे माता ! अब यह चन्द्रमा तुम्हारे मुखरूप चन्द्र को देख कर लज्जावत होय प्रभा रहित होय गया है तुम्हारा मुख निष्कलंक मर गुण कर कहिये गुणों की खान पर चन्द्रमा दोषी कहिये रात्रि उसका करण हारा है उससे दोषकर र कलंकी है ||७६॥ अर दीपों की ज्योति मंद मासे है सो मानों ये दीपक अपने प्रकाश को हंसे हैं जो यह जिनेन् के माता पिता का गृह नखों के उद्योत समान चांद सूर्य का प्रकाश नही यहां हम प्रकाश करें इस
ता दिन यह पूरण भया, श्री हरिवंश पुराण | पढो सुनो अरु सरहो, पंडित करो बखान ॥२७॥ श्री हरिवंश पुराण की भाषा सुनह सुजान । सकल ग्रन्थ संख्या भई, उन्नीस सहस प्रमाण ||२५||
७६
दो हजार रु चार सौ ता ऊपर पंचास ।
संवत वीर जिनेशका कियो ग्रन्थ परकास ॥२६॥
.