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महाकवि दौलतराम कासनीया: -०.क्तित्व पता
तथा जु दौलतराम को, मल्ल लिखी वह बात । कर हु भाषा हरिवंश की, सबके चित्त सुहात ॥१४।। सब सामिन मिले जब, श्री चैत्याल्य माहि । भाषी दौलतराम से, जिन श्रु तसे प्रध जाहि ।।१५।। जिनवानी रस अमृता, जा सम सुधा न और 1 जाकर भव भरमण मिटे, पावे निश्चल ठोर ।।१६।। यामैं विलम्ब न कीजिये, करो शीघ्न ही येह । सफल होहि जाकर सही, उत्तम मिनखा देह ।।१७।। रत्नचंद दीवान एक, भूपत के परधान । तिन के भाई शुभ मती, विधीचंद परवान ।।१८।। सो दौलत के मित्र अति, भये जु उद्यम रूप । तिन के आग्रहते यह टीका भई अनूप ।। १६॥ दौलत ने अति भाव घर, भाषा कीनी ग्रन्थ । महा शान्त रस को भरो, सुगम मुक्ति को पंथ ।।२०।। सीताराम जो लेखका, और सवाईराम । तिन पर लिखवायो जु यह, बहुत कथा को धाम ।।२१।। ताकर सुधरे भव यह, अरु पाये शुभ लोक । होये अति प्रानन्द अरु, कबहु न उपजे शोक ॥२२॥ सुखी होह राजा प्रजा, होहु सकल दुःख दूर । बहो धर्म जिनदेव को, जाहि बखाने सूर ॥२३।। न्याति खंडेल जु वाल है, गोत्र कासलीवाल । सुत है आनन्द राम को, बसवे वास विशाल ॥२४॥ सेवक नरपति को सही नामसु दौलतराम । ताने यह भाषा करी, जपकर जिनवर नाम ।।२५॥ अट्ठारह सौ संवता, तापर घर गुरगतीस । बार शुक्र पून्यो तिथी, चैत मास रति ईस ॥२६॥