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प्रस्तावना
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अस्तुत: हरिवंश पुराण हिन्दी भाषा की महान निधि है । कवि ने जिस तरह पालंकारिक भाषा में कथा का वर्णन किया है, वह प्राज से २०० वर्ष पूर्व किसी विज्ञान के सामर्थ्य के बाहर था। पद्य कार तो बहुत थे; पर मद्य में और वह भी ललित भाषा में कथा का वर्णन प्रत्येक के वश की बात नहीं थी। नगर सवाई जयसुरा, जहां से बहु या 1 राजा पृथिवीसिंह है, जो कछुवाहा जाति ।।३।। शिरोभाग राजन में, टूडाहड पति सोय । ताके मंत्री श्रावका, और न्यातहु होय ।।४।। बहुत बसें जनी जहा. जीव दया व्रत पाल । पूजा करे जिनेंद्र की, पागम सुने रसाल |५|| बहुत जीव श्रद्धावती, चरचा मांहि सुजान । ग्रन्थ अध्यातम पागमा, सुने बहुत धर कान ।।६।। संस्कृत भाषामई, भये जु प्रादि पुराण । पद्मपुराणादिक बहुरि , भाषा भये निधान ।।७।। रायमल्ल के रुचि बहुत, ब्रत क्रिया परवीन । गये देश मालव विष, जिन शासन लवलीन ।।८।। तहां सुनाये ग्रन्थ उन, भाषा आदिपुराण । पद्मपुराणादिक तथा, तिन को कियो बखान ।।६।। सव भाई राजी भये, सुनकर भाषा रूप। तिनके रुचि अति ही बढी, धारी कथा अनूा ।।१।। रायमल्ल से सवन ने, करी प्रार्थना येह । करवायो हरिवंश की, भाषा बहु गुण गेह ११ आगे दौलतराम ने, टीका भाषा मांहि । करी सो ही यह अब करे, यामें संशय नाहि ।।१२।। तब भेजी पत्री यहां, रायमल्ल धर भाव । लिखो जु साधर्मीन को, करण धर्म प्रभाव ।।१३।।