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________________ प्रस्तावना भाषा टीका ता ऊपर कीनी टोडरमल्ल मुनिवर कृत बाकी रही ताके माहि अचहल । ये तो परभव कू गये जर मार मार . सब साधर्मी तव कियो मन मैं यह विचार । सम्पूर्ण ग्रन्थ में २२८ श्लोक हैं। इनमें अहिसा धर्म पर विशेष जोर दया है। इसके अतिरिक्त पंच प्रणुवत, तीन गुणवत तथा चार शिक्षाव्रत के वर्णन के अतिरिक्त रात्रि भोजन का जबरदस्त निषेध किया गया है । महाकवि दौलतराम ने ग्रन्थ के उत्तर भाग की भाषा टीका लिखी ! तथा अत्यधिक सरल शब्दों में उसे प्रस्तुत किया। "विवेकी पुरुष जो है जो गृहस्थ अवस्था में भी संसार से विरक्त होकर सदा ही मोक्ष मार्ग में उद्यमी रहते हैं और वे ही अवसर पाकर शीघ्र ही मुनि पद को धारण करके सकल परिग्रह को त्याग कर निर्विकल्प ध्यान में प्रारूढ़ होकर पूर्ण रत्नत्रय को मानकर संसार के भ्रमण का उच्छेद कर मीन ही मोक्ष की प्राप्ति करते हैं" महापष्ठित टोडरमल की भाषा ब्रज भाषा को लिए हुए हैं, प्रब कि दौलतराम की भाषा व ही बोली का रूप लिए हुए है। संस्कृत के दुरूह गम्दों को भी उन्होंने सरल हिन्दी शब्दों में समझा दिया है। कवि ने पहिले श्लोकों की टीका, विषय का स्पष्टीकरण के लिए अर्थ तथा फिर भावार्थ दिया है । १३. हरिवंश पुराण : हरिबंश पुराण ‘पद्मपुराण' की राम कथा के समान ही कृष्णा कथा है; जिसमें २२खें तीर्थकर नेमिनाथ के जीवन-चरित के वर्णन के प्रसंग में पूरे महाभारत के पात्रों के जीवन का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है । जैनाचार्यो द्वारा पद्मपुराण के समान अपभ्रश में स्वयंभू का रिडणेमिचरिठ तथा संस्कृत में जिनसेनाचार्य का 'हरिवंश पुराण' इस विषय की प्रमुख रचनाएं है। दौलतराम ने ऐसे विशाल पुराण को हिन्दी गद्य टीका करके हिन्दी की लोकप्रियता में श्रीवृद्धि का एक प्रौर प्रयास किया और उसमें वह पूर्णत: सफल भी रहा । 'हरिबंश पुराण' का स्वाध्याय घर-घर होने लगा और हिन्दी क्षेत्रों में भी उसके स्वाध्याय का प्रचार हो गया। राजस्थान के कितने ही भण्डारों में हरिवंश पुराण की एक से अधिक प्रतियां उपलब्ध होती है जो उनके स्वाध्याय के प्रचार को धोतित करती है।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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