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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्राप्ति, एवं उनका लक्ष्मण के साथ युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा आदि विविध वर्णनों के पश्चात् राम निर्धारण प्राप्त करते हैं और इस प्रकार अत्यधिक सुन्दर ढंग से तथा भक्ति पूर्वक राम कथा की समाप्ति होती है । इस कथा के प्रारम्भ में कवि ने निम्न शब्दों में राम के जीवन की प्रशंसा की है
'कसे हैं श्रीराम, लक्ष्मी कर अलिगित है हृदय जिनका और प्रफुल्लित है मुख रूपा कम जिनका, महापुण्याधिकारी हैं, महाबुद्धिमान हैं गुणन के मन्दिर और उदार हैं चरित्र जिनका, केवल ज्ञान के ही गम्य है ।"
महाकवि दौलत राम ने "पद्म पुराण' को हिन्दी गद्य में सिल कर के स्वाध्याय प्रेमियों के लिए महान अवसर प्रदान किया। यही नहीं हिन्दी के पाठकों की गद्य में राम कथा देकर एक नवीन परम्परा को जन्म दिया। अब तक जितनी भी रामायण लिखी गयी थीं वे सब पच में ही थी । महाकवि विमल सूरि ने प्राकृत में, महाकवि स्वयंम् ने अपनश में, महाकवि बाल्मीकि ने संस्कृत में, रविषेरणाचार्य ने संस्कृत मे जो रामकथाए लिखी, वे सब पद्य में ही थी, लेकिन दौलतगम ने इसे गद्य में निबद्ध कर उसकी लोकप्रियता में वृद्धि की तथा उसे जैन समाज के घर-घर में पढ़ी जाने वाली कथा बना दी ।
“पद्म पुराण" की भाषा खड़ी बोली के रूप में है । यद्यपि कुछ विद्वानों ने इसे लूडारी भाषा के रूप में स्वीकार किया है लेकिन वास्तव में कषि ने अजभाषा प्रभावित खड़ी बोली के रूप में इसे प्रस्तुत किया है। जो प्रत्यधिक मनोरम एवं हृदयग्राही बन गई है। कहीं तो इसकी भाषा इतनी मालंकारिक बन पड़ी है, मानों वह हिन्दी की कादम्बरी हो । कवि ने इसे विभिन्न उपमानों से संवारा है।
"पद्म पुराण" की रचना में साधर्मी भाई रायमल्ल का अनुरोध विशेष रूप से उल्लेखनीय है ; जिसका स्वयं कवि ने निम्न प्रकार से उल्लेख किया है
रायमल साधर्मी एक, जाके घर में स्वपर विवेक । दयावंत गुणवंत सुजान, पर उपकारी परम निधान ।। दौलतराम सु ताको मिश्र, तासों भाष्यों वचन पवित्र । पद्मपुराण महाशुभ नथ, तामें लोक शिखर को पंथ ।। भाषा रूप होय जो येह, बहुजन बांच कर अति नेह । ताके वचन हिये में धार, भाषा कीनी मति अनुसार ।।