SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व "मालव देस उजेणी नगरी विषं राजा अपराजित राणी विजयां त्यांक विनयश्री नाम पुत्री हुई। हस्तिशीषपुर के राजा हरिषेण परणीं । एक दिन दंपति वरदत्त मुनि ने भाहारदान देता हूया । पाछ बहुत कालाइ राज्य कीयौ। एक रात सण्याग्रह विष विनयश्री पति सहित सूती थी। मगर का धूप का धूम करि राजा राणी मृत्यु प्राप्ति हुवा। मध्य भोगभूमि विषे उपज्या । तहां सौ विनयश्री को जीव चंद्रमा के देवी हई।" पत्र सं० १५७ इन उदाहरणों को पढ़ने से जात होगा कि कवि की भाषा कितनी निखरी हुई है। यद्यपि कवि के राजस्थान निवासी होने से इस पर बढारी भाषा का भी कुछ प्रभाव है तथा कहीं-कहीं बज भाषा के शब्दों का भी प्रयोग हुमा है लेकिन फिर भी कथाकोश को हम खड़ी बोली की ही कृति कहेंगे। इसमें विभिन्न नामों का पूर्णतः शुद्ध रूप में व्यवहार किया गया है। इनका तद्भव रूपान्तर नहीं किया गया है। ऐसे सभी शब्द तत्सम हैं-बद्धमान स्वामी, बारिषेण, चम्पापुरी, भरतक्षेत्र, रामदत्ता जम्बुद्वीप मान्यखेट, पात्रकेसरी, प्रकलंक, नि.कलंक । भाषा टीका में 'में" के स्थान पर विष" शब्द का प्रयोग हुआ है। ज्यांक (१३५) उतरया (१३४) देबालागौ (१३३) । लेकिन निम्न उदारणों से ज्ञात होगा कि कवि ने कथा कोपा को कितनी परिष्कृत भाषा में निबद्ध किया था । (क) "पीतकर जी स्त्री सहित नान में बैठा तब क्यों वस्तु भूलि आया आ। मो व कलेवा निमित्त नगर में पाया तब नागदत्त पापी जिहाज चलाय दीनी।" .२०७ (ख) एक दिन रात्रिबंत सिद्धकूट चैताले बंदबानं मयो थो सो हरिचन्द मुनिकन धर्म श्रवण बारि दिगम्बर हुवो। सो एक दिन वन विर्ष गुफा में कायोत्सर्ग तिप्ट घो। दुर तप करि अत्यन्त स्वीस सरीर देख्यो ।। . पृ० सं० १६० (ग) "यर सातसं प्रग रक्षक जो कोढ़ पीडित छा सो निरोग दया । अहो सिद्धचक्र की पूजा करिवा थकी अस्कृष्ट फल नै कल्पवृक्ष की वेलि की नाई ई भव में दे छ।" पृ० सं० २१७ प्रभी तक 'पुण्यास्त्र कथाकोश का' भाषा की दृष्टि से अध्ययन नहीं हुया है जिसकी प्रत्यधिवा आवश्यकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के इतिहास में इस कृति का पर्याप्त महत्व है। दि० जैन साहित्य में इससे पूर्व इतनी
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy