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________________ प्रस्तावना भाषा: कवि द्वारा पुण्यात्रव कथाकोश की रचना करीब २५० वर्ष पूर्व प्रागरा में की गयी थी। उस समय भागरा जिला बज भाषा का केन्द्र था लेकिन यहां खड़ी बोली का प्रचलन एवं लेखन भी प्रारम्भ हो गया था। इस कथा कोश की भाषा खड़ी बोली के अधिक निकट है। यहां इस कथाकोश में से चार उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं जिससे पाठकगण इस कृति की भाषा का अच्छी तरह पता लगा सकेंगे। एक दिन राजा सिकार जायो । राह में प्राप्ताप नाम जोग धरयां जिसोधर मुनिराज देख्या । कोप करि राणी का गुर जाणि कुकरा छोड्या। व स्थान नमस्कार करि आय बंख्या । जब देखि मुनि का गला मैं मुवो सांप नास्यो तीही विरियां सातवां नरक की प्राय बांधी। चौधे दिन राति नै राखी ने कहीं। तब चेलना कही महा पाप कीयो । प्रातमां ने नरक में बोयो । या कहि महा दुःख कीयो । राजा कहीं राणी व काई दूरि करिवा सके न छ चेलणां कही महामुनि बौन करें। पर यो वे कर तो ये मुनि नहीं। पत्र सं० २१ xxx नागकुमार जी पंचमी को उपवास लीयो। पर विघि पूछी सो साधक काहे छ। फागुण के महीने तथा प्राषाढ़ काती के महीनं सुदी ४ नै पवित्र होय पूजाकरि शास्त्र सुरिण। साधु नै विधिपूर्वक पाहार के पाचं माप एकाभुक्त कीजै। हामि भात पारिण ले सकल संसारी धन्धो छोडि धरम कथा करि दिन पूरो कीजै। रात्रि जागरण कीज्ये । प्रभु का चरणां चित लगा। पाछे उपवास के दिन च्यार प्रकार आहार कषाय को त्याग कर विषय स्यों पाइ सुख होय । पत्र सं. ६५ जबूद्वीप पूर्व विदेह पुष्कालयती देस । पुडरीकणी नगरी विर्ष राजा वसुपाल श्रीपाल । तिह नगरी बाहरी सर्वकर उद्यान विर्ष भीम केवली को समोसरण आयो । ते खचरवती सुभगा रतिसना सुसीमा ए चारि वितरी पाप केवली नै पूछती हुई । हे प्रभु म्हां को पति कोगा हवसी । पत्र सं०११८ X
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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