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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मुनि कथा, ५१. मधुपिंगल कथा, ५२. नागवत कथा, ५३. ब्राह्मण चक्रवर्ती कथा, ५४. अजन चोर कथा, ५५. अनन्तमती कथा, ५६, उदयन' कया, ५७. रेवती रानी कथा, ५८. सेठ सुदर्शन कथा, ५. वारिषेण मुनि कथा, ६०. विनार किया, ६२. अकुमार कथा, ६२. प्रीतिकर कथा, ६३. सत्यभामा पूर्व भव कथा, ६४. श्रीपाल चरित्र कथा, ६५, जम्बू स्वामी कथा ।
उक्त ५६ कथाओं के प्रतिरिक्त ६ लघु कथाए' प्रमुख कथानों में प्रा गगी हैं जिससे उनकी ख्या ६५ हो गयी है । इस प्रकार पुण्यात्रव कथाकोकथाओं का वास्तव में कोश ग्रन्थ है । जिनसे जीवन निर्माग को शिक्षा मिलती हैं । प्रत्येक कथा कहने का मुख्य उद्देश्य क्या नायक के जीवन का वर्णन करने के अतिरिक्त नैतिकता, सदाचार और अच्छे कार्यों को करने की परम्परा को जन्म देना है । साथ ही ये कथाए कर्म सिद्धान्त फा भी मुख्य रूप से प्रतिपादन करती है। जैसा हम करेंगे- उसी के अनुलार हमें परिणाम भुगतना पड़ेगा 1 इन सभी कथानों के नायक भारतीय संस्कृति के महापुरुष हैं और इन्हीं महापुरुषों की जीवन गाथा से ये कथाएं अधिक निखर पड़ी हैं। कुछ कथाए' ऐसी भी हैं, जिन पर कितने ही काव्य, चरित एवं रास लिखे गये हैं और उन्हीं को कवि ने संक्षिप्त रूप में इस कृति में प्रस्तुत किया है। ऐसी कथामों में-नागकुमार, भविष्यदत्त, श्रेणिक, जयकुमार सुलोचना, धन्यकुमार, प्रीतिकर, श्रीपाल एवं जम्बूस्वामी की कथाओं के नाम लिये जा सकते हैं । लोकप्रियता
पुण्यात्रव कथाकोश समस्त जैन समाज में अत्यधिक प्रिम कृति के रूप में समाहत है। ऐसा कोई शास्त्र भण्डार नहीं जिसमें इस कथाकोपा की दो चार प्रतियां नहीं मिलती हो। स्वाध्याय प्रेमियों के लिए। इस कथाकोश का स्वाध्याय श्रावश्यक माना जाता है । हिन्दी में इससे पूर्व इतकी बड़ी कृति किसी भी विवाद के द्वारा नहीं लिखी गयी थी। इसलिए देश के अहिन्दी भाषा भाषी प्रदेशों में भी इस कथाकोश का स्वाध्याय करने के लिए सैकड़ों हजारों व्यक्तियों ने हिन्दी सीखी । कवि को इस कृति का चारों मोर जोरदार स्वागत हुग्रा और देश के कोने-कोने में इसका स्वाध्याय' होने लगा। जयपुर के पाटोदी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में इसकी एक प्रति संवत् १७८८ मंगसिर बुदी १३ रविवार के दिन की लिखी हुई है । जिसकी प्रतिलिपि अहमदाबाद में हुई थी। इस पाण्डुलिपि से स्पष्ट है कि गुजरात में भी इसकी प्रतियां लिखी जाती थी और उनको अन्यत्र भेजा जाता था ।