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प्रस्तावना
निम्न प्रकार है
अरघ करौ उछाह सौं, नौं आठौं अग निवाय ।
आनन्द दौलतराम कौ, प्रभु भी भौ होइ सहाय ।।११।। च्यार ग्यान घर नहि देख, हम देखें सरधावंत ।
जाने माने अनुभवै, तुम राधौ पास महंत ।। अर्धम् ।। ६ पुण्यात व कथाकोश :
कथानों के माध्यम से जन सामान्य में नैतिकता एवं सदाचार को प्रोत्साहन देना देश की प्राचीन परम्परा रही है। इस दृष्टि से लिखा हुआ कथा-साहित्य संस्कृत, प्राकृत अपभ्रश एवं हिन्दी प्रादि सभी भाषामों में मिलता है। जैनाचार्यों ने अपने कथा साहित्य में नैतिकता एवं सदाचार के प्रयास को सर्वाधिक प्रमुखता दी और देश की प्रायः सभी भाषामों मे विशाल कथा साहित्य का निर्माण किया । पुण्यात्रव कथाकोश, व्रतकथाकोश, पाराधना कथाकोश, कथाकोश प्रादि नामों से उन्होंने सैकड़ों कमाएं लिखी और बालकों, यूवकों एवं पाठकों में स्वाध्याय के प्रति गहरी रुचि पैदा की तथा बुराइयों से बचते हुये शिष्ट जीवन व्यतीत करसे की प्रेरणा दी।
___'पुण्यानव कथाकोश' को सर्व प्रथम मुमुक्षु गम चन्द ने संस्कृत भाषा में लिखा था। इसकी कथाएं जैन समाज में काफी लोकप्रिय है। कविवर दौलतराम ने इन्हीं कथानों को हिन्दी भाषा में निबद्ध करके हिन्दी भाषा भाषी पाठकों के लिए एक महान् अवसर उपस्थित किया । कथाकोश में ५६ कथाएं हैं । मुमुक्षु रामचन्द्र के कथाकोश की प्रशंसा कवि ने निम्न प्रकार है
पुण्यासव की कथा रसाल, पूजादिक अधिकार बिसाल । षट् अधिकार परम उतकिष्ट, छप्पन कथा मध्य है मिष्ट ।।१।। आदिपुराणदिक जे कह्या, अभिप्राय तसु याम लह्या । आचारिज जिम करि अभिलाष. लिखी कथा संस्कृत भाष ।।२।।
रामचन्द्र मुनि अति परवीन, कथा कोश पुण्यासव कीन । तिनकी कहा बड़ाई करौ, बंदन करि निज उर में धरी ॥१०॥