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प्रस्ताव
श्रीपाल चरित सतसई के रूप में है। जिसमें ७५५ दोहा चौपई हैं । कवि ने इस काव्य में भी कथा का धारावाहिक ही वर्णन किया है | बीच २ में सगं एवं अध्यायों में उसे विभक्त नहीं किया। काव्य की भाषा सीधी एवं सरल है । कवि ने उसमें काव्यत्त लाने का संभवत: कोई प्रयास नहीं किया फिर भी रचना में काव्यत्व स्थान २ पर उपलब्ध होता है ।
सुनि श्रीपाल निसंकित होय, मन माही इम चितित सोय । देखे कहा कर्म करेय, मोनधारी तिनमें संचरेय || १८४|| इनकू पट भूषरण पहराय, कियो तिलक पुजे इन पाय । फेरि चले मारन के काज ल्याए जिहाज पासी सेठराज || १६५।। कोटी भट वर रूप अपार, फिरि फहरे पट भूषण सार । सीस तिलक सोभे इमराय, मानू जस लछमी वर आय ।।१६६ ।।
इस प्रकार समूचा ही काव्य सरल भाषा में निबद्ध है। काव्य की वन शैली एवं भाषा दोनों ही उत्तम हैं ।
'श्रीपाल चरित' में भाग्य एवं पुरुषार्थ की लड़ाई में भाग्य की विजय हुई है। श्रीपाल की रानी मैना सुन्दरी भाग्य पर प्रबल विश्वास रखती थी; जबकि उसका पिता पुरुषार्थं का समर्थक था। भाग्य को नीचा दिखाने के लिए उसने अपनी सुन्दर एवं यौवनपूग पुत्री 'मैना' का विवाह एक कोढ़ी राजा के साथ कर दिया। पर भाग्य से उसका कुष्ठ रोग दूर होगया और उसे पति के रूप में कोटिभट राजा प्राप्त हुआ। इसके पश्चात् भी श्रीपाल के जीवन में कितनी ही विपत्तियां प्रायों; लेकिन उन सभी विपत्तियों में वह स्वर्ग के समान तप करके निकला। उसे अपना राज्य एवं अन्य सभी सम्पदा here मिल गयीं। लेकिन कुछ समय बाद श्रीपाल को संसार में उदासीनता हो गई और उसने सपरिवार वैराग्यमय तपः साधना करके निर्वारण को प्राप्त किया
७ चौबीस दण्डक भाषा :
ग्रह महाकवि की लघु कृति प्रस्तुत कृति में एक गति वाला जीव
है। इसमे ५७ दोहा एवं चोपई छन्द है । अन्य किस किस गति में जा सकता है—
१ महावीर भवन, जयपुर के संग्रह में वेष्टन मं० १६६६ के गुटके में संग्रहीत |