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________________ ६२ महाकवि दौलतगम कागलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतिस्व चरित की भाषा हिन्दी है । इसमें कवि का काव्य कला की ओर अधिक हमान न होकर काश्य के नायक की कथा का वर्णन करने का रहा हैं । इक दिन भूप गयो बन मांही, मारग जती जसोध र पाही। पातापन तप तपीये कोही, देखी श्रेणिक इम कही ।। ६२।। मुनि पे कुक्कर दीये छुड़ाय, तब उन दीन दक्षणा जाय 118 | नमस्कार करी बैठे स्नान, भूपती लखी रांणी गुर जान || ६४॥ मरत साप मुनि गल धरो. नरक सातमी को बंध पड़ो। चौथे दिरा रेनकी बार, कही भूप रागी सब छार ||६५॥ वावि यह काव्य गवचन्द्र के काध्यानमार लिखा है, ऐसा उन्होंने ग्रन्थ की प्रसारित में जलनेस्ल किया हैं । सिवानन्द सुनि राम सीष्यो. रामचन्द्र रिषी नाम। तिन अनुसार बनाय के, रची सो दौलतराम ॥५०॥ ६ श्रोपाल चरित : 'श्रीपालनरित' कवि का प्रबन्धकाव्य है जिसमें फोटिभट श्रीपाल का जीवन चरित निबद्ध है। श्रीगाल के जीवन पर जैनाचार्यों ने सभी भाषामों में काव्य लिखे हैं । हिन्दी मे कवि के पूर्व ब्रह्म यमल ने 'श्रीपाल राम' (सं० १५१.) तथा परिभल कवि ने श्रीपाल चरित (स० १६५१) की रचनाए लिखकर काव्य रचना के मार्ग को प्रशस्त कर दिया था। श्रीपाल एवं मैना सुन्दरी का जीवन अत्यधिक लोकप्रिय रहा है और इसी कारण इनके जीवन पर विविध रचना उपलब्ध होती हैं। महाकधि दौलतराम ने थीमाल के जीवन की कथा को लोकप्रियता को देखकर ही सवत् १८२२ फागुण सुदी ११ को चरित काव्य के रूप में उसे छन्दोबद्ध किया। कवि ने इस काम को सोमोन भट्टाक के श्रीपाल चरित के आधार पर बनाया है। जिसका उलेख स्वयं कवि में इस प्रकार किया है ... संवत् अष्टादस तसु जान, ऊपर बीस टोय फिर ग्राम । फागुण सुद इग्यार निस माहि, कियो समापत उर हलसाय ।।७५४।। सोमसेन अनुसार ले, दौलतराम सुखदाय । एह भाषा पूरन करी, सकल संघ मुखदाय ।।७५५।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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