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________________ प्रस्तावना "विवेक-विलास" का दूसरा अध्याय 'ठग ग्राम वर्णन' है। इसमें कवि की भावाभिव्यक्ति है कि हे मनुष्य ! यह जगत ठगों का निवाम-स्थान है। मोहादि वहां के अनन्त ठग हैं, जिनके नाम कहां तक लिए जावें। मोह इन सब ठगों का राजा है; क्योंकि मोह की फांसी के समान जगत में दूसरी फांसी नहीं है। जीवों को यह फांसी देकर मान गुणों को हर लेता है। मोह निद्रा के सरीमा नहीं है. यह नगरः महरा बान चेतना खोकर सोता रहता है। ममता मोह की प्रिया है। जिसके समान अन्य कोई ठगिनी नहीं है। यह ममता सुरेन्द्र नरेन्द्र आदि सभी को ठग लेती हैं। सबसे बड़े ठग राग एवं ष हैं, जिनकी भुजानों के प्रताप से मोह जगत पर शासन करता है। राम की प्रिया सरागता है। विषयों में अनुगगता ही यहां अद्भुत मिनी हैं। द्वेष के समान कोई दुबुद्धि नहीं है । द्वेष की प्रिया दुर्जनता है, जिसने प्रभी सभी को ठगा है। इसी तरह इस नगर में काम के समान दूसरा कोई प्रबल उग नहीं है, जो जगत का शीन हरण करके बदफैल करता रहता है। काम की प्रिया रति है, जो जगत को भरमाती रहती है। इसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ रोग, शोक प्रसयम आदि प्रौर भी ठगों के नाम गिनायें हैं : ___विलास' का तीसरा वर्णन निज वन निरूपण' के नाम से है । यत् २५ दोहा छन्दों में पूर्ण होता है । इसमें कवि ने बतलाया है कि जब यह प्रात्मा अपने वन में क्रीडा करती है तो उसे मृत्यु का भी डर नहीं रहता। प्रात्मवन अमर उद्यान है जिसमें परमानन्द प्राप्त होता है। यह वन प्रात्महंस के लिए केलि करने का स्थान है लेकिन यह हम हिंसा से रहित है। तथा शान्ति रस का धारण करने वाला है। इस वन में प्रात्मकला के समान कोई कोयल नहीं है। वह आत्म-वेलि हो रसिया है । यहां मरबर सम भाव के रूप में है। चएल स्वभाव वाले मृग नहीं है नया दुष्ट भाव वाले दुष्ट पशु भी नहीं है। हम आत्म वन में न तो मोह रूपी दत्य का निवास है और न कषाय रूपी किरात ही निवास करता है। इमो तरह से वन में मिलने वाली सामग्री को प्रात्मवन के रूप में चित्रित किया है। वहां न तो कांटे हैं और न विकल्पों का जाल है और न माया पो fan बेलि ही है । इस वन मैं समादिक के रूप में रजनीचर नहीं विचरते हैं : प्रात्म ज्ञान के रूप में घने वृक्ष हैं। यहां तो स्वभाव रुपी प्रमृत वृक्ष है जो सा अमर फल देते हैं। यह एक ऐसा रमीक वन है, जहां प्रात्म राजा विचरण करना है। __ चतुर्थ अध्याय 'निज भवन बर्णन' के रूप में है। यह विस्तृत वर्णन है, जो ७७ दोहा छन्दों में पूर्ण होता है । 'भव बन' अत्यधिक विरूप है । इसलिए
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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