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________________ ५५ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रभपुर नगर का राजा अात्मा ही है। मभरस भाव उसके मित्र हैं । सम्यक् ज्ञान ही उसका प्रधान अमात्य है। अनन्तनीय मात्मा का सेनापति है। भाव उसका दुर्ग है । उमका गम्भीर स्वभाव ही उसके यहां खाई है। प्रात्म ध्यान ही द्वार हैं और यही अध्यात्म का सार है। अनन्त चतुष्टय भाव ही चार सुभट है। इस प्रकार रूपकों की प्रत्येक पद्य में छटा दिखलायी देती है। प्रथम अध्याय में इसी तथ्य को स्पष्ट किया गया है कि प्रात्मा राजा है तथा गुगा इसकी प्रजा है । शुद्ध भाव ही । उसके शस्थ हैं जिनसे उसकी जीत होती है। उस पुर में कोई बोर नहीं है। वह प्रात्मा स्वयं मालिक है। उसके पास महासुखों की सभी सामग्री उपस्थित रहती है। शुद्ध पारगामिक भाव ही राजग़भा के पार्षद है। जो सदैद जागा या जाग्थित नहीं है। क्षायिक सम्यक्त्व उसके महाभट हैं जिसके बल पर यह आत्मा निस्कलंक राज्य करता है। निज स्वभाव ही उसका सिंहासन है। उस पर यह बैठकर सब पर शासन करता है। दुःखों को हरण करने वाला स्वभाव ही उसका छन्त्र हैं तथा निर्भय भावों की तरंग चमर है। इसके प्रागे कवि ने प्रात्मा के विभिन्न गुरणों को रूपकों द्वारा समभाया है। ऐसी प्रात्मा परमानन्द दशा में विराजली हैं, वहां उसे इन्द्रिय-भोगों को जरा भी चिन्ता नहीं हैं। प्रात्मानुभव ही अमृत है जिसका वह सदा पान किया करता है। उसे भूख एवं प्यास की बाधा नहीं होती। जन्म, जरा एवं मृत्यु का भय नहीं तथा रात्रि एवं प्रात: उसके लिए समान हैं । रात्रि में विचरा करने वाले चोरों के समान रागादि भावों का यहां संचार नहीं और उसके प्रात्मपुर में रोग-शोक प्रादि पिशाच नहीं है। ठग के रूप में काम करने वाले काम एवं लोभ का वहां नाम भी नहीं है । ऐसे प्रदेश में वस्तु स्वभाव ही पुर है और बह धर्ममय है। जहां राजा और प्रजा दोनों धर्ममय है । वहां धर्म रहित होकर कोई नहीं रहता। ऐमें यह प्रात्मा जब अपने नगर में रहता है; तत्र चारों ओर महान सुख बरसता है। वह उसका नन्दन वन है। लेकिन इस उपवन में न लो मायारूपी बेलि है और न विकल्पों का जाल है। क्रोधादि पंखों का यहां पूर्णत: मभाव है । उस वन में शुभाशुभ कर्म वृक्ष नहीं है। वहां सुख रूपी सरोवर है। जिसमें सहज नीर भरा हुआ है। वहां अपने भाव वाले तस्वर हैं । इस प्रकार यह पूर्ण वान रूपकों से भरा हुआ है।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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