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________________ प्रस्तावना ५३ जिन छन्दों का इस परिच्छेद में प्रयोग हुआ है, उनमें दोहा, चौपई, पौपया, सवैया, कवित, छन्द गीता, भुजंगीप्रयात, त्रोटक, सवैय्या इकतीसा, छन्द मोतीराम, पबड़ी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । कवि ने कथानों के माध्यम से भी जिन महिमा का वर्णन किया है । इकारान्त पद्यों के अन्त में कवि ने अपने पुत्रों के नाम गिनाये हैं। ऋकार से पहिले जिनवाणी का स्तवन और फिर षट्ऋतुओं का वर्णन मिलता है। सभी वर्णन विस्तृत एवं स्पष्ट हैं एवं कवि की विद्वत्ता के द्योतक हैं । तृतीय परिच्छेद : यह परिच्छेद कवर्ग का है। जिसमें ककार, खकार, गकार, प्रकार एक इकारान्त पचों को दिया गया है। इन परिच्छेदों में ककारान्त के २०५ पद्य हैं, खमारान्त के ८१ पद्य, गकाराम्त के ११७ पच्च प्रौर घकारान्त के ५६ पद्य एवं इकारान्त के २४ पद्म हैं। प्रारम्भ में वर्णन करने से पूर्व संस्कृत पद्य अलग से दिये गये हैं । गृद्ध के प्रसंग में सीताहरण की कथा दी हुई है। चतुर्थ परिच्छेद : इसमें चवर्ग के सभी पंचाक्षरान्त पद्य हैं इनमें चकारान्त के १६०, छकाराम्त के ७४, अकारान्त के ३२, झकारान्त के ४२ एवं अकारान्त के २० पद्य है। इस प्रकार यह परिच्छेद ३५८ पद्यों में पूर्ण होता है । इनमें झकारान्त में झूठ की बुराइयों पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस परिच्छेद का प्रमुख छन्द सर्वया एवं सोरठा है। वरान कुछ क्लिष्ट हो गया है । पंचम परिच्छेद : इसमें दवर्ग के सभी पंचाक्षरान्त पद्य है। इनमें सकारान्त के ३७ पद्म, छकारान्त के ३५ पद्य, डकारान्त के ७६, हकारान्त के २६ पद्य एवं राकारान्त के ४३ पध हैं । इस परिच्छेद में सब मिलाकर २१७ पद्य हैं । इस परिच्छेद का वर्णन सामान्य है। षष्ठम परिच्छेद : उसमें तवर्ग के पद्य दिये गये हैं। जिसमें तफारान्त के १७३ पद्य, यकारान्त १३६ पद्य, दकारान्त के ३४६ पद्य, धकारान्त के ७६ एवं नकारान्त के १२६ पद्म हैं। सब मिलाकर हिन्दी पद्यों की संख्या ६६६ है,
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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