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प्रस्तावना
मथेष्ट हुआ है । जिनमें उत्प्रेक्षा, उदाहरण, उमा एवं अनुप्रास प्रलंकारों के नाम उल्लेखनीय हैं।
जोवन्धर चरित' शान्त रस का काव्य है। इसका नायक अनेक साहस पूर्ण कार्यों को करने के पश्चात् एवं दीर्घ समय तक शासन सुख भोगने के उपरति संसार से विरक्त हो जाता है और अन्त में घोर तपस्या करके मोक्ष को पाता है। अपने पूर्व भव में १६ दिन तक हंस के बच्चे को उसकी मां से विलग करने का फल लीनन्धर को दृम अब में अपनी माता से १६ वर्ष तक विछोह मिलता है। क्योंकि सभी जीवों की समान प्रात्माए' होतो है पोर उन्हें भी सुख-दुःख का अनुभव समान रूप से होता है। अन्म से पूर्व हो पिता को मृत्यु, श्मशान में जन्म, सेठ का श्मशान में मृत पुत्र को लाना और उसके स्थान पर जीवन्धर को पालना, यक्षिणी द्वारा उपकार, रक्षा करना और फिर यक्ष द्वारा विपत्तियों में सहायता ये सब कुछ ऐसी घटनाए हैं, जो कम सिद्धान्त में अटूट विश्वास उत्पन्न करने वाली है ।
भाषा:
_ 'जीवन्धर चरित' की भाषा शुद्ध हिन्दी है । यद्यपि कवि ने उसे उदयपुर में रहते हुए छन्दोबद्ध किया था लेकिन मेवाती मौर गुजराती भाषा का इस काव्य पर प्रभाव नहीं है। किन्तु कवि के जयपुर निवासी होने के कारण कहीं-कहीं नारी शब्दों का प्रयोग अवश्य हो गया है।
अध्यात्मबारहखड़ी:
'अध्यात्म बारहखडी' कवि की अध्यात्मक कृतियों में सबसे बड़ी रचना है। इसमें स्वर एवं व्यंजन के माध्यम से प्रध्यात्म विषय का वर्णन किया गया है। स्वयं कवि ने इसका अध्यात्म वारहखही नाम देकर इसके विषय को स्पष्ट किया है। एक प्रकार से वह अध्यात्म विषय का कोश ग्रन्थ है जिसका प्रत्येक वर्णन भक्ति एवं अध्यात्म रस से मोत-प्रोत है। कवि ने इसमें अपने पूरे ज्ञान को ही जैसे उडेल कर रख दिया है। इस ग्रन्थ में तीर्थकरों की विविध रूप में स्तुति मिलेगी । सहस्रनाम, शतनाम जैसी अनेक रचनाएं इसमें समायी हुई हैं। इस कृति का दूसरा नाम "भवत्यक्षरमालिका बावनी स्तवम" भी दिया हुआ है। अध्यात्म बारहखडी इसका अलग नाम है--जैसा कि कवि ने कृति की प्रत्येक पुष्पिका में उल्लेख किया हैं।
कधि ने अपनी इस पूरी कृति को ८ परिच्छेदों में निम्न प्रकार विभक्त किया है