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________________ प्रस्तावना ४६ नायक के ही चरित्र को समुन्नत बनाया गया है साथ ही अपने स्वयं की वीणावादन की कला पर भी प्रकाश डाला गया हैसुनि करि चित्रत रहे भूचरा खेचरा। मृग मोहित व्हे महाराग मैं चित धरा। या विद्या करि हुई कवंर की कीरती। जांनी सब संसार राग मैं कीमती ॥३७॥२१ जीबन्दर सुगन्ध परीक्षा में भी प्रवीण थे, इसलिए कवि ने "मंघ परख वा दूजो नाहि, जीवन्धर सो धररणी माहि'-७०/२४ के शब्दों में अपने नायक की प्रशंसा की है। जीवधर अत्यधिक दयालु थे। अब एक श्वान भयभीत होकर उल्टा तालाब में पड़ जाता है सो उसे वे अपने शरणों की भी परवाह न करते हुए तालाब में कूद पड़ते हैं और मरते हुए कुत्ते को एणमोकार मंत्र सुनाते हैं। जिससे वह मरकर यक्ष योनि को प्राप्त करता हैप्रारण छोडि वे सनगुख भयो, सुनिके कुमर कहाई हि लयो । जान्यों इह जीधै नहिं कोइ, याको मरण अवारहि होय ।।७२।।२५ तब ताके काननि मै आप, दियो मंत्र जो नासै पाप । नमोकार सो मंत्र न और, इहै मंत्र सब श्रुत को मौर ।।७३।।२५ कधि मे व्यापारियों की मनोवृत्ति पर अच्छी चुटकी ली है और लिखा हैबनियनि की इह रीति अनादि, हरडै सूठि प्रावला आदि । बेचें और मोलि ले सही, इन तौ रीति और ही गही ॥६६॥२७ जीवन्धर : काध्य का नायक जीवन्धर है। उसके पिता राज नगर के राजा थे । लेकिन उसका जन्म शमशान में हुमा । जन्म लेते ही वह पितृ विहीन हो गया और अपनी माता विजया रानी के द्वारा पालन होने के स्थान पर गंवोत्कट सेठ के घर उसका लालन पालन हुना। लेकिन जीवन्धर पुण्यात्मा था; इसलिए जहां भी गया वहीं पर उसे सब प्रकार की सुख सुविधा मिलती गयी । गंधोत्कट सेठ ने जीवन्धर का लालन-पालन प्रत्यधिक स्नेह के साथ किया । वह
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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